अच्छे कर्मों का फल भी होता है अच्छा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Feb, 2018 12:38 PM

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धर्मग्रंथों और सूत्रों में मानव-जीवन की सम्पूर्ण कार्यपद्धति का दिन, तिथि, प्रहर, पल आदि के अनुसार विवरण देते हुए पर्याप्त मार्गदर्शन दिया गया है। गुण-दोषों के आधार पर दुष्कर्मों के दुष्परिणामों का उल्लेख मिलता है।

धर्मग्रंथों और सूत्रों में मानव-जीवन की सम्पूर्ण कार्यपद्धति का दिन, तिथि, प्रहर, पल आदि के अनुसार विवरण देते हुए पर्याप्त मार्गदर्शन दिया गया है। गुण-दोषों के आधार पर दुष्कर्मों के दुष्परिणामों का उल्लेख मिलता है। वर्तमान में प्राचीन ग्रंथों के विवेचन को अपेक्षित मान्यता भले ही न मिल रही हो और कर्मों को परिणामों के संबंध न जोड़ते हों तब भी कर्म की प्रधानता मान्य है। पारलौकिक व्यवस्था में स्वर्ग और नरक का महत्वपूर्ण स्थान है। स्वर्ग और नरक के विधान के अतिरिक्त वर्तमान के सुख-दुख पर पूर्व कृत कर्मों की छाया के अस्तित्व पर विचार किया जाता है।

 

गौतम स्वामी ने मानवीय कष्टों, दुर्भाग्य आदि से संबंधित अनेक प्रश्रों के उत्तर प्राप्त कर जनकल्याणार्थ उद्घाटित किए थे। लगभग 2500 वर्ष पूर्व के 33 प्रश्नोत्तर का सारांश यहां प्रस्तुत है। दान करने से जो व्यक्ति जी चुराता है, चोरी करता है और धर्म की हंसी उड़ाता है वह व्यक्ति सदा धर्महीन रहकर जीवन भर कष्ट उठाता है और मर कर दुर्गति पाता है। कुछ लोग सर्व सुविधाओं के स्वामी होते हुए सभी सुविधाओं से वंचित रहते हैं, क्योंकि वे साधु-महात्माओं की सेवा करते हुए दिए गए दान पर बाद में पछताते हैं। हरे-भरे वृक्षों को काटने वाले अगले जन्म में नि:संतान होते हैं। 

 

पर स्त्री को बुरी नियत से देखने वाला और साधु-संन्यासियों के दुर्गुणों का बखान करने वाला व्यक्ति अगले जन्म में काना होता है। शहद के छत्ते के नीचे आग जलाने वाले अंधे होते हैं। मिठबोला, परनिंदा से प्रमुदित और धर्मसभा में सोने वाला व्यक्ति बहरा होता है। अमानत में खयानत करने वालों का जवान बेटा मरता है। पशुओं के बच्चों एवं उनकी माता को मारने वालों के माता-पिता बचपन में ही मर जाते हैं। स्वाद के वशीभूत होकर जो लोग पशुओं का मांस खाते हैं, उनकी मीठी वाणी से भी श्रोता आकर्षित नहीं होते।

 


साधु-संन्यासियों की सेवा सम्मान, दुखियों को उदारता से दान देने और सत्कार्यों पर पैसा बहाने वाला व्यक्ति धनी होता है। वह माटी को छू दे तो सोना बन जाता है। तपस्वी तथा भगवान का भक्त सुंदर, स्वस्थ और बुद्धिमान होता है। प्राणीमात्र पर दयाभाव रखने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। ऐसे व्यक्ति को मनचाही वस्तु हमेशा मिलती रहती है। भयभीत प्राणियों को अभयदान देने वाला व्यक्ति निर्भीक होता है। जो व्यक्ति रोगी और वृद्ध तपस्वियों की भक्ति भाव से सेवा करता है, वह बलवान होता है। 


व्रती और सदाचारी व्यक्ति की वाणी इतनी मधुर होती है कि उससे शत्रु भी प्रसन्न रहते हैं। जो लोग तन-मन-धन से जनहित करते हैं, अगले जन्म में उनकी आज्ञा सब शिरोधार्य करते हैं। शुभ, सरल भाव रखने और धर्म-कर्म करने से ही नर का चोला मिलता है। गुप्तदान देने वालों को अकस्मात लक्ष्मी प्राप्त होती है। सच्ची श्रद्धा से धर्म का पालन और धर्म-कर्म में अग्रणी व्यक्ति सबको प्यार करते हैं। शील, धर्म और आचार का कठोरता से पालन करने वालों के समक्ष महान विभूतियां भी शीश झुकाती हैं। जिस व्यक्ति को करोड़पति, राजा, योद्धा, बलवान, शास्त्री और बहादुर होने का घमंड होता है, वह अगले जन्म में दास बनता है।     

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