यहां स्नान कर भगवान परशुराम ने पाई थी मातृहत्या के पाप से मुक्ति!

Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Jan, 2018 01:49 PM

here lord parashuram got salvation from the sin of the his mother

परशुराम त्रेता युग के एक मुनि थे। उन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार कहा जाता है। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा संपन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इंद्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख...

परशुराम त्रेता युग के एक मुनि थे। उन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार कहा जाता है। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा संपन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इंद्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। भगवान पशुराम श्री हरि के आवेशावतार थे। परशुराम के चार बड़े भाई थे लेकिन गुणों में यह सबसे बढ़े-चढ़े थे। एक दिन गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख हवन हेतु गंगा तट पर जल लेने गई रेणुका आसक्त हो गई और कुछ देर तक वहीं रुक गई। हवन काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दण्डस्वरूप सभी पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी। लेकिन मोहवश किसी ने ऐसा नहीं किया। तब मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति नष्ट हो गई।

 

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अन्य भाइयों द्वारा ऐसा दुस्साहस न कर पाने पर पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञानुसार माता का सिर गरदन से अलग कर दिया। यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा। तो उन्होंने तीन वरदान मांगे-

 

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1.मां पुनर्जीवित हो जाएं,
2.उन्हें मरने की स्मृति न रहे और
3.भाई चेतना-युक्त हो जाएं 


जमदग्नि ने उन्हें तीनों वरदान दे दिए। परशुराम जी की माता तो पुनः जीवित हो गई पर परशुराम पर मातृहत्या का पाप चढ़ गया।

राजस्थान के चितौड़ जिले में स्थित मातृकुण्डिया वह जगह है जहां परशुराम जी ने अपनी मां के वध से पाप मुक्त हुए थे। यहां पर उन्होंने शिव जी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था और उनके अनुसार मातृकुण्डिया के जल में स्नान करके अपना पाप धोया था। इस जगह को मेवाड़ का हरिद्वार भी कहा जाता है। यह स्थान महर्षि जमदगनी की तपोभूमि से लगभग 80 किलो मीटर दूर हैं।

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मातृकुण्डिया से कुछ मील की दुरी पर ही परशुराम महदेव मंदिर स्थित है। इसका निर्माण स्वंय परशुराम ने पहाड़ी को अपने फरसे से काट कर किया था। इसे मेवाड़ का अमरनाथ कहते है। 
 

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