आप में कितना अहंकार और क्रोध भरा पड़ा है, इस विधि से करें मालुम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Jun, 2017 12:13 PM

how much haughtiness and anger have arisen in you

महाराष्ट्र के 3 संत-ज्ञानेश्वर, नामदेव और मुक्ताबाई एक बार तीर्थाटन पर निकले। तीनों अपनी यात्रा के दौरान प्रसिद्ध संत गोरा के यहां पहुंचे।

महाराष्ट्र के 3 संत-ज्ञानेश्वर, नामदेव और मुक्ताबाई एक बार तीर्थाटन पर निकले। तीनों अपनी यात्रा के दौरान प्रसिद्ध संत गोरा के यहां पहुंचे। गोरा ने तीनों महान संतों को अपने निवास पर पाकर उनका आत्मीय स्वागत किया। जलपान के उपरांत संत समागम में धर्म और दर्शन के गूढ़ संदर्भों पर चर्चा चली। गोरा कुम्हार थे तो उनके घर में एक डंडा रखा था। मुक्ताबाई ने डंडे को देखा तो उसके उपयोग के बारे में पूछा। गोरा ने उत्तर दिया, ‘‘मैं जब घड़े बनाता हूं तो इस डंडे की चोट से परीक्षण करता हूं कि घड़े पक्के हैं या कच्चे रह गए हैं।’’ 


मुक्ताबाई ने मुस्कुराते हुए पूछा, ‘‘हम भी तो मिट्टी के घड़े ही हैं, क्या इस डंडे से हमारी परीक्षा हो सकती है?’’


गोरा ने कहा, ‘‘क्यों नहीं?’’ 


तीनों आगंतुक संतों की सहमति से गोरा ने डंडा लेकर उनका परीक्षण शुरू किया। पहले उन्होंने ज्ञानेश्वर के सिर पर हलके से डंडा मारा, फिर मुक्ताबाई के सिर पर। दोनों मुस्कुरा दिए। फिर नामदेव की बारी आई? गोरा ने डंडा उठाया और जैसे ही उनके मस्तक पर स्पर्श किया, देखा नामदेव के चेहरे पर क्रोध की बारीक-सी झलक है। तत्काल गोरा ने नामदेव की ओर संकेत कर कहा, ‘‘यह घड़ा कच्चा है।’’ 


एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। तभी गोरा ने विनम्रता के साथ कहा, ‘‘क्षमा करें मगर जब आपके सिर पर डंडे का स्पर्श किया गया तो चेहरे पर क्रोध की झलक दिखाई दी। इसका अर्थ है कि अभी कुछ बाकी है। यह अहंकार ही है, कुछ और नहीं। जब तक अहंकार का यह सर्प मरेगा नहीं, डंडे से मुस्कान उत्पन्न नहीं होगी, क्रोध ही पैदा होगा।’’ 


नामदेव को बोध हुआ और उन्होंने संत बिठोबा से दीक्षा लेकर अपने भीतर के अहंकार को सदा के लिए समाप्त कर दिया। 

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