कैसे चोर बनें महात्मा गोस्वामी तुलसीदास के शिष्य

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Dec, 2017 07:43 AM

how thief become disciples of mahatma goswami tulsidas

एक बार गोस्वामी तुलसीदास जी कहीं से लौट रहे थे कि सामने से कुछ चोर आते हुए दिखाई दिए। चोरों ने तुलसीदास जी से पूछा, तुम कौन हो? तुलसीदास ने कहा भाई जो तुम हो, वही मैं हूं। चोरों ने उन्हें भी चोर समझा। एक चोर ने कहा मालूम होता है, नए हो।

एक बार गोस्वामी तुलसीदास जी कहीं से लौट रहे थे कि सामने से कुछ चोर आते हुए दिखाई दिए। चोरों ने तुलसीदास जी से पूछा, तुम कौन हो? तुलसीदास ने कहा भाई जो तुम हो, वही मैं हूं। चोरों ने उन्हें भी चोर समझा। एक चोर ने कहा मालूम होता है, नए हो। हमारे साथ चलो। तुलसी दास जी उनके साथ चल दिए। चोरों ने एक घर में सेंध लगाई और उनसे कहा यहीं बाहर खड़े रहो। यदि कोई दिखाई दे तो हमें खबर कर देना। चोर अंदर गए ही थे कि तुलसीदास जी ने अपनी झोली से शंख निकाला और उसे बजाना शुरू कर दिया। चोरों ने आवाज सुनी तो डर गए और बाहर आकर देखा तो उनके हाथ में शंख दिखाई दिया। पूछा-शंख क्यों बजाया था। तुलसीदास जी ने कहा कि आपने ही कहा था कि जब कोई दिखाई दे तो खबर कर देना। मैंने अपने चारों तरफ देखा तो मुझे प्रभु राम दिखाई दिए। मैंने सोचा कि आप लोगों को उन्होंने चोरी करते देख लिया है और चोरी करना पाप है, तुम्हें दंड देंगे, इसलिए आप लोगों को सावधान करना मैंने उचित समझा।


एक चोर ने पूछ ही लिा कि मगर राम तुम्हें कहां दिखाई दिए। तुलसीदास जी ने कहा कि भगवान का वास कहां नहीं है? वे तो सर्वज्ञ हैं, अंतर्यामी हैं और उनका सब तरफ वास है। मुझे तो वे इस समय संसार में सब जगह दिखाई दे रहे हैं, कैसे बताऊं? चोरों ने सुना, तो वे समझ गए कि यह कोई चोर नहीं, महात्मा है। अकस्मात उनके प्रति श्रद्धाभाव जागृत हो गया और वे उनके पैरों पर गिर पड़े। उन्होंने चोरी करना छोड़ दिया और वे उनके शिष्य हो गए।

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