सूर्य की गति एवं रथ के वर्णन से, जानिए कैसे डालते हैं वे मानव जीवन पर प्रभाव

Edited By ,Updated: 03 Feb, 2017 09:44 AM

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आज रथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, पुत्र सप्तमी, अचला सप्तमी और भानु सप्तमी का शुभ दिन है। यह विशेष तिथियां भगवान सूर्य नारायण को समर्पित हैं। श्रीमद्भागवत पुराण से जानिए सूर्य देव के विषय

आज रथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, पुत्र सप्तमी, अचला सप्तमी और भानु सप्तमी का शुभ दिन है। यह विशेष तिथियां भगवान सूर्य नारायण को समर्पित हैं। श्रीमद्भागवत पुराण से जानिए सूर्य देव के विषय में कुछ खास, पुराणों में वर्णित उल्लेख के अनुसार भूलोक एवं द्युलोक के मध्य अंतरिक्ष लोक है। सूर्य भगवान द्युलोक में निवास करते हैं और त्रिलोक को प्रकाशित करते रहते हैं। सूर्य उत्तरायण-दक्षिणायन तथा विषवत नामक मंद, शीघ्र एवं समान गतियों से चलते हुए मकरादि राशियों में ऊंचे-नीचे तथा समान स्थानों में जाकर दिन-रात को छोटा-बड़ा और समान करते हैं। आज के विज्ञान के युग में हम जितनी जानकारियों से अवगत होते हैं वे सब वृत्तांत श्रीमदभागवत में उद्धृत हैं।


सूर्य को ग्रह नहीं, देवता मानकर ही सम्पूर्ण विस्तृत जानकारी प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है। सूर्य भगवान जब मेष या तुला राशि पर आते हैं तो रात और दिन समान हो जाते हैं। वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या जब सूर्य इन पांच राशियों में चलते हैं तब प्रतिमास रात्रियों में एक-एक घड़ी कम हो जाती है और इसी हिसाब से दिन बढ़ते जाते हैं। जब सूर्य, वृश्चिक, मकर, कुंभ, मीन तथा मेष राशियों में भ्रमण करते हैं तब दिन प्रतिमास एक-एक घड़ी बढ़ता है और रात्रि छोटी हो जाती है। दक्षिणायन आरंभ होने तक दिन बढ़ते हैं और उत्तरायण लगने तक रात्रियां बढ़ती हैं।


सूर्य की परिक्रमा का मार्ग मानसोत्तर पर्वत पर नौ करोड़ इक्यावन लाख योजन है। मेरु पर्वत के चारों ओर सूर्य परिक्रमा करते हैं इसलिए समय-समय पर सूर्योदय, मध्यान्ह, सूर्यास्त और अर्धरात्रि होती रहती है। जो लोग सुमेरू पर्वत के निवासी हैं, उन्हें भगवान सदैव मध्यकालीन रहकर तपाते हैं। जिस पुरी में सूर्य भगवान का उदय होता है, ठीक उसी समय विपरीत दिशा में दूसरी पुरी में सूर्यास्त होता है। जहां मध्यान्ह होता है, उसकी विपरीत दिशा में मध्यरात्रि हो जाती है। 


जिस प्रकार सूर्य भगवान परिक्रमा करते रहते हैं, उसी प्रकार चंद्र आदि अन्य ग्रह ज्योतिषचक्र में अन्य नक्षत्रों के साथ-साथ उदित एवं अस्त होते रहते हैं। सूर्य भगवान का रथ एक मुहूर्त में चौंतीस लाख आठ सौ योजन की परिधि में घूमता है। इस रथ के एक पहिए का नाम संवत्सर है जिसके बारह अरे हैं जो वर्ष के बारह मास हैं, छह नेमियां (हाल) हैं जो छहों ऋतुएं हैं, तीन नाभि (ऑवन) हैं जो चतुर्मासी हैं।


रथ में बैठने का स्थान छत्तीस लाख योजन लम्बा और नौ लाख योजन चौड़ा है। अरुण नाम के सारथी ने इसमें सात घोड़े जोत रखे हैं। वे ही इस रथ पर बैठे सूर्य भगवान को लेकर चलते हैं। इस प्रकार सूर्य भगवान भूमंडल में नौ करोड़ इक्यावन लाख योजन लम्बे घेरे में से प्रत्येक क्षण में दो हजार दो योजन की दूरी पार कर लेते हैं। सूर्य भगवान के साथ-साथ ग्रह, नक्षत्र, तारे और चंद्रमा अपनी-अपनी गति पर चलते हैं। 


कालभेद के अनुसार सबकी गति भिन्न होती है। भगवान भुवनभास्कर का काल बारह मास है। एक राशि में अवधि एक मास की है। दो मास की छह ऋतुएं होती हैं। प्रत्येक मास चंद्रमा के प्रभाव से शुक्ल तथा कृष्ण दो पक्षों का माना गया है।

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