क्यों लगता है श्रीकृष्ण को छप्पन भोग, आशीर्वाद और प्रेम पाने के लिए चढ़ाएं ये 3 चीजें

Edited By ,Updated: 25 Apr, 2017 08:57 AM

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श्री कृष्ण सर्वगुणाधार हैं। उनका सतत् ध्यान करने से मनुष्य का कल्याण होता है और उन्हें भूल जाने से ही जीव की दुर्गति होती है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा प्रदत्त गीता का ज्ञान,

श्री कृष्ण सर्वगुणाधार हैं। उनका सतत् ध्यान करने से मनुष्य का कल्याण होता है और उन्हें भूल जाने से ही जीव की दुर्गति होती है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा प्रदत्त गीता का ज्ञान, तो दूसरी ओर बंसी की तान, से मनुष्य ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी भी सम्मोहित हो गए। जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया तब उन्होंने उन्हें अपनी परमप्रिय वस्तुओं के बारे में बताया। जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ उन्हें इन चीजों का भोग लगाता है, उस पर वह सदा अपना आशीर्वाद और प्रेम बनाए रखते हैं।


श्रीमद्भागवद् गीता के श्लोक अनुसार-
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो में भक्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपह्रतमश्नामि प्रयतात्मनः।।

अर्थात- भगवान श्रीकृष्ण चन्द्र कहते हैं की फल, फूल और जल उन्हें बहुत भाते हैं। फिर वह आगे कहते हैं की जो सामान पूजा में प्रयोग किया जाता है, उसे कुछ सीखना चाहिए।


भगवान को लगाए जाने वाले भोग की बड़ी महिमा है। अधिकतर उन्हें 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं। जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म होता है।

 

छप्पन भोग की कथा
भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएं हैं। हिन्‍दू मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्‍ण एक दिन में आठ बार भोजन करते थे। जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया तो लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया। दिन में आठ प्रहर भोजन करने वाले व्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके भक्तों के लिए कष्टप्रद बात थी।

भगवान के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए व्रजवासियों ने सात दिन और आठ प्रहर के हिसाब से 56 प्रकार का भोग लगाकर अपने प्रेम को प्रदर्शित किया। तभी से भक्‍तजन कृष्‍ण भगवान को 56 भोग अर्पित करने लगे। भोग में दूध, दही और घी की प्रधानता है। मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर में आज भी अनेक प्रकार की पूरियां प्रतिदिन भोग में आती हैं। ठाकुरजी को अर्पित भोग में दूध, घी, दही की प्रधानता होती है लेकिन इनको कभी भी बासी भोजन अर्पित नहीं किया जाता।

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