जन्म कुंडली में हो एेसे योग, तो आप भी बन सकते हैं धनवान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Mar, 2018 02:05 PM

if such yog can happen in the horoscope you can become rich

आज के युग में एेसा कोई व्यक्ति नहीं जिसे धन की आवश्यकता न हो, या जो धन पाना न चाहता हो। इसे पाने के लिए व्यक्ति हर संभव प्रयास करता है। लेकिन कभी-कभी धन के अभाव के कारण व्यक्ति अपनी प्रतिभा उजागर करने में असमर्थ रह जाता है अर्थात अपनी प्रतिभा पूर्ण...

आज के युग में एेसा कोई व्यक्ति नहीं जिसे धन की आवश्यकता न हो, या जो धन पाना न चाहता हो। इसे पाने के लिए व्यक्ति हर संभव प्रयास करता है। लेकिन कभी-कभी धन के अभाव के कारण व्यक्ति अपनी प्रतिभा उजागर करने में असमर्थ रह जाता है अर्थात अपनी प्रतिभा पूर्ण रूप से उजागर नहीं कर पाता और वह श्रेष्ठ शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता, जिस कारण उसकी स्वयं की उन्नति तो रुक जाती है और साथ ही वह समाज तथा राष्ट्र को अपनी योग्यता एवं प्रतिभा के अनुरूप योगदान करने में समर्थ नहीं हो पाता, यही एक मुख्य कारण है कि हमारे ज्योतिर्विदों व विद्वानों के पास आने वाले अधिकतर जातकों के प्रमुख प्रश्नों में धन सम्बंधी प्रश्न ही होते हैं।


जन्म पत्रिका में एकादश भाव आय से संबंधित कहा गया है, दशम भाव कर्म अर्थात रोजगार, व्यवसाय भाव होता है, जन्म कुंडली में इन दोनों भावों का आपस में बहुत महत्व है अर्थात कर्म का प्रतिफल आय के रूप में ही प्राप्त होता है। इसी कारण दशम से अगला भाव आय का होता है। आय होने पर व्यक्ति व्यय करता है  इसीलिए कुंडली में द्वादश भाव व्यय से संबंध रखता है।


आय और व्यय के अंतर को कुंडली में द्वितीय भाव सूचित करता है। यह जातक के संचित और बचत का भाव है कि व्यक्ति के पास कितना धन है अर्थात जातक कितना धनी हो सकता है। इसका विचार कुंडली के द्वितीय भाव से किया जाता है। कुंडली में पंचम और नवम भाव लक्ष्मी भाव माने गए हैं अत: इन भावों से भी धन का विचार किया जाता है। जन्म कुंडली में लग्न और तृतीय भाव का भी जातक की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है। प्रथम भाव स्वयं जातक का प्रतिनिधित्व करता है वहीं कुंडली का तृतीय भाव जातक के साहस, पराक्रम और उद्यम का प्रतीक है। अत: इन सबके बिना धन की कल्पना नहीं की जा सकती है और कहा भी गया है कि-


‘‘उद्यमेन् हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै:।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।’’

पंचमेश और नवमेश विशेष धन दायक होते हैं। दोनों से जो भी ग्रह युत हों, वे अपनी-अपनी दशा में धनदायक होते हैं। ग्रहों की क्रूरता और सौम्यता के अनुसार ही जातक क्रूर या सौम्य कार्यों से धनार्जन करता है, अधिक या कम धनार्जन कुंडली में ग्रहों के बल पर निर्भर करता है।  यदि आय भाव और धन भाव तथा उनके स्वामियों का संबंध लग्न एवं तृतीय अथवा इनके भावेशों से हो रहा हो तो जातक स्वयं सम्पत्ति आदि अर्जित कर उसका उपभोग करता है। यदि आय भाव और धन भाव तथा उनके स्वामियों का संबंध सप्तम या सप्तमेश से हो रहा हो तो जातक को अपने जीवन साथी के सहयोग से धन आएगा।


यदि आय भाव और धन भाव तथा उनके स्वामियों का सम्बन्ध नवम एवं दशम भाव से हो रहा हो तो जातक  अपने पिता या बड़े बुजुर्गों के सहयोग से धनार्जन करेगा, इस प्रकार आयेश और धनेश का संबंध अष्टम भाव या अष्टमेश से हो तो जातक अनैतिक एवं अवैधानिक कार्यों से धन प्राप्त करेगा। कुंडली में यदि आयेश और धनेश का संबंध अष्टमेश या द्वादेश या इन भावों के स्वामियों से है तो जातक विदेशों से अथवा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के माध्यम से धन प्राप्त करता है। धन प्राप्ति के लिए होरा अर्थात वर्ग 2 और दशांश  अर्थात वर्ग 10 कुंडलियों का भी आकलन करना आवश्यक है । जन्म कुंडली में और भी ऐसे योग होते हैं जो जातक को एक समय विशेष पर धन प्राप्ति में सहायक होते हैं।

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