जीवन को जानना, पहचानना और समझना चाहते हैं तो पढ़ें ये कहानी

Edited By ,Updated: 22 Mar, 2017 02:02 PM

if you want to know recognize and understand life then read this story

एक बार एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक अपने गुरु जी से पूछा, ‘‘गुरु जी, कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है, कुछ कहते हैं कि

एक बार एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक अपने गुरु जी से पूछा, ‘‘गुरु जी, कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है, कुछ कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव की संज्ञा देते हैं। इनमें कौन सही है?’’


गुरु जी ने तत्काल बड़े ही धैर्यपूर्वक उत्तर दिया, ‘‘पुत्र, जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक संघर्ष है, जिन्हें गुरु मिल गया उनका जीवन एक खेल है और जो लोग गुरु द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने लगते हैं, मात्र वे ही जीवन को एक उत्सव का नाम देने का साहस जुटा पाते हैं।’’ 


यह उत्तर सुनने के बाद भी शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट न था। गुरु जी को इसका आभास हो गया। वह कहने लगे,‘‘लो, तुम्हें इसी संदर्भ में एक कहानी सुनाता हूं। ध्यान से सुनोगे तो स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर पा सकोगे।’’ 


उन्होंने जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी- किसी गुरुकुल में 3 शिष्यों ने अपना अध्ययन सम्पूर्ण करने पर अपने गुरु जी से यह बताने के लिए विनती की कि उन्हें गुरु दक्षिणा में उनसे क्या चाहिए। गुरु जी कहने लगे, ‘‘मुझे तुमसे गुरु दक्षिणा में एक थैला भर के सूखी पत्तियां चाहिएं, ला सकोगे?’’


वे तीनों मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें लगा कि वे बड़ी आसानी से अपने गुरु जी की इच्छा पूरी कर सकेंगे। वे उत्साहपूर्वक बोले, ‘‘जी गुरु जी, जैसी आपकी आज्ञा।’’ 


तीनों शिष्य चलते-चलते एक जंगल में पहुंचे लेकिन यह देखकर कि वहां पर तो सूखी पत्तियां केवल एक मुट्ठी भर ही थीं, उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वे सोच में पड़ गए कि आखिर जंगल से कौन सूखी पत्तियां उठाकर ले गया होगा?  इतने में ही उन्हें दूर से आता हुआ एक किसान दिखाई दिया। वे उससे विनम्रतापूर्वक याचना करने लगे कि वह उन्हें केवल एक थैला भर सूखी पत्तियां दे दे लेकिन किसान ने उनसे क्षमा याचना करते हुए उन्हें बताया कि वह उनकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि उसने सूखी पत्तियों का ईंधन के रूप में पहले ही उपयोग कर लिया था।


अब वे तीनों पास ही बसे एक गांव की ओर इस आशा से बढऩे लगे कि हो सकता है वहां उनकी कोई सहायता कर सके। वहां पहुंच कर उन्होंने जब एक व्यापारी को देखा तो बड़ी उम्मीद से उससे एक थैला भर सूखी पत्तियां देने के लिए प्रार्थना करने लगे लेकिन उन्हें फिर से निराशा ही हाथ आई क्योंकि व्यापारी ने तो पहले ही कुछ पैसे कमाने के लिए सूखी पत्तियों के दोने बनाकर बेच दिए थे। अब निराश होकर वे तीनों खाली हाथ ही गुरुकुल लौट गए।  


गुरु जी प्रेमपूर्वक बोले, ‘‘निराश क्यों होते हो ? प्रसन्न हो जाओ और यही ज्ञान देने के लिए कि सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करतीं बल्कि उनके भी अनेक उपयोग हुआ करते हैं, मैंने गुरु दक्षिणा के रूप में देने को कहा था।’’


तीनों शिष्य गुरु जी को प्रणाम करके खुशी-खुशी अपने-अपने घर की ओर चले गए। वह शिष्य जो गुरु जी की कहानी एकाग्रचित होकर सुन रहा था, अचानक बड़े उत्साह से बोला, ‘‘गुरु जी, अब मुझे अच्छी तरह से ज्ञात हो गया है कि आप क्या कहना चाहते हैं। आपका संकेत इसी ओर है न कि जब सर्वत्र सुलभ सूखी पत्तियां भी बेकार नहीं होती हैं तो फिर हम कैसे किसी वस्तु या व्यक्ति को छोटा मान कर उसका तिरस्कार कर सकते हैं?’’

 

अब शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट था।

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