Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Feb, 2018 03:00 PM
एक बार एक राजा को साधना करने की सूझी। उसने अपने मंत्री को बुलाया और पूछा, ‘‘मैं अमुक मंत्र की साधना करना चाहता हूं। आप बताएं मैं क्या करूं?’’
एक बार एक राजा को साधना करने की सूझी। उसने अपने मंत्री को बुलाया और पूछा, ‘‘मैं अमुक मंत्र की साधना करना चाहता हूं। आप बताएं मैं क्या करूं?’’
मंत्री ने जवाब दिया, ‘‘महाराज, आप अपने गुरु के पास जाएं और उनके बताए अनुसार ही कार्य करें।’’
पर राजा जिद्दी था और उसने किसी व्यक्ति को मंत्र का जाप करते हुए सुना और उसे याद कर अपने हिसाब से जाप करने लगा।
जब जाप करते-करते काफी अर्सा हो गया तो राजा ने एक रोज अपने मंत्री से पुन: पूछा, ‘‘मुझे इस मंत्र का जाप करते हुए महीनों हो गए, पर कोई लाभ नहीं हुआ।’’
मंत्री चुपचाप राजा की बात सुनता रहा और फिर बोला, ‘‘महाराज, मैंने आपसे कहा था कि मंत्र को विधिपूर्वक गुरु से प्राप्त करने पर ही वह लाभ देता है।’’
किंतु राजा उसकी बात से सहमत नहीं हुआ और तरह-तरह के तर्क देने लगा। मंत्री कुछ देर राजा की बातें सुनता रहा और तभी अचानक उसने पास खड़े एक सैनिक को आदेश दिया, ‘‘सैनिक, इन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लो।’’
मंत्री की यह बात सुनकर राजा और सैनिक समेत सभी सभासद आश्चर्य में पड़ गए। किसी को मंत्री की बात का मंतव्य समझ में नहीं आया।
आखिरकार मंत्री के बार-बार आदेश देने पर राजा को क्रोध आ गया और उसने सैनिकों से कहा, ‘‘मंत्री को तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाए।’’
राजा के हुक्म की तुरंत तामील हुई और सैनिकों ने मंत्री को पकड़ लिया। यह देख मंत्री जोर-जोर से हंसने लगा। राजा ने हंसने का कारण पूछा तो मंत्री बोला, ‘‘महाराज, मैं आपको यही तो समझाने की कोशिश कर रहा हूं। जब मैंने सैनिकों से आपको गिरफ्तार करने को कहा तो उन्होंने मेरी नहीं सुनी। लेकिन जब आपने मुझे गिरफ्तार करने का आदेश दिया तो इस पर तुरंत अमल किया गया।
इसी तरह गुरु द्वारा दिए गए मंत्र में उनकी अनुभूति और अधिकार की शक्ति होती है। गुरु वह व्यक्ति होता है, जो किसी ज्ञान का स्वयं प्रयोग कर उसे शिष्य को सौंपता है। यही कारण है कि गुरु का महत्व सर्वोपरि बताया गया है।’’