‘कांवड़ यात्रा’: हर कदम के साथ मिलता है अश्वमेघ यज्ञ जितना फल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Jul, 2017 08:01 AM

importance of kanwar yatra in sawan month

श्रावण मास में देवाधिदेव महादेव को खुश करने के लिए उनके भक्त कांवड यात्रा पर निकलते हैं। यात्रा के दौरान बांस की एक पट्टी के दोनों किनारों पर बांस से बनी टोकरियां अथवा कलश या प्लास्टिक के

श्रावण मास में देवाधिदेव महादेव को खुश करने के लिए उनके भक्त कांवड यात्रा पर निकलते हैं। यात्रा के दौरान बांस की एक पट्टी के दोनों किनारों पर बांस से बनी टोकरियां अथवा कलश या प्लास्टिक के डिब्बे में गंगाजल भर कर उसे अपने कंधे पर लेकर महादेव के ज्योतिर्लिंगों पर चढ़ाने की परंपरा ‘कांवड़ यात्रा’ कहलाती है। फूल-माला, घंटी और घुंघरू से सजे दोनों किनारों पर वैदिक अनुष्ठान के साथ गंगाजल का भार पिटारियों में रखा जाता है। धूप-दीप की खुशबू, मुख में ‘बोल बम’ का नारा, मन में ‘बाबा एक सहारा’ का जयकारा लगाते हए कांवडिये अपने आराध्य देव महादेव का अभिषेक करने गाजे-बाजे के साथ निकल पडते हैं। 


वैदिक शोध संस्थान एवं कर्मकाण्ड प्रशिक्षण केन्द्र के पूर्व आचार्य डा आत्मा राम गौतम ने बताया कि श्रावण मास मे शिव आराधना और गंगाजल से अभिषेक का शिव पुराण में बहत महत्व बताया गया है। कंधे पर कांवड़ रखकर बोल बम का नारा लगाते हुए चलना भी पुण्यदायक होता है। इसके हर कदम के साथ एक अश्वमेघ यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है। हर साल श्रावण मास में लाखों की संख्या में कांवड़िये गंगा जल से शिव मंदिरों में महादेव का जलाभिषेक करते हैं।  


उन्होंने बताया कि भोलेनाथ के भक्त यूं तो साल भर कांवड़ चढ़ाते रहते हैं। सावन का महीना भगवान शवि को समर्पित होने के कारण इसकी धूम कुछ ज्यादा ही रहती है । श्रावण मास में लगता है पूरा देश शिवमय हो गया है। कावंडिये बोल बम, हर हर महादेव के जयकारों के साथ गेरूआ वस्त्र पहने पैदल, ट्रक और ट्रैक्टरों आदि पर बड़े-बड़े लाउडस्पीकर बजाते हए सड़कों पर दिखाई पड़ते हैं। अब कांवड़ सावन महीने की पहचान बन चुका है।

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