बैद्यनाथ में घटी थी रावण के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Jan, 2018 06:20 PM

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रावण जिसने श्रीराम की अर्धांगिनी माता सीता का हरण किया था। इसे उस युग का सबसे श्रेष्ठ विद्वान और तपस्वी माना गया है। लेकिन उसके बुरे कर्मों के कारण रावण के अंत समय में उसका पांडित्य भी उसकी रक्षा नहीं कर पाया। रावण के बारे में धर्म ग्रंथों में भी...

रावण जिसने श्रीराम की अर्धांगिनी माता सीता का हरण किया था। इसे उस युग का सबसे श्रेष्ठ विद्वान और तपस्वी माना गया है। लेकिन उसके बुरे कर्मों के कारण रावण के अंत समय में उसका पांडित्य भी उसकी रक्षा नहीं कर पाया। रावण के बारे में धर्म ग्रंथों में भी वर्णन किया गया है। रामायण के समय में कुछ एेसी जगहों का वर्णन किया गय़ा है जिस में रावण के जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाएं घटी थी।

शिव पुराण के अनुसार, रावण भगवान शिव का भक्त था। उसने बहुत कठिन तपस्या की और एक-एक करके अपने मस्तक भगवन शिव को अर्पित कर दिए। उसकी इस तपस्या से शंकर भगवान प्रसन्न होकर उसके दस सर भगवान ने फिर जोड़ दिए थे। रावण ने भगवान से वरदान के रूप में भगवान शिव को अपने साथ लंका चलने की बात कही। भगवान शिव ने रावण की बात मान ली, लेकिन रावण के सामने एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि अगर रावण भगवान के शिवलिंग को रास्ते में कहीं भी जमीन पर रख देगा तो भगवान शिव उसी जगह पर स्थापित हो जाएंगे। रावण ने भगवान शिव की शर्त मान ली और शिवलिंग को लेकर लंका की ओर जाने लगा।


 
यह सूचना मिलते ही देवताओं में खलबली मच गई। यदि भगवान शिव लंका में स्थापित हो जाएंगे तो लंका को हरा पाना किसी के लिए भी असंभव हो जाता। ऐसे में रावण को कोई भी नहीं हरा पाता। इस परेशानी का हल निकालने के लिए सब विष्णु भगवान के पास पहुंचे। सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से किसी भी तरह रावण को शिवलिंग लंका ले जाने से रोकने की प्रार्थना की।


देवताओं की प्रार्थना पर विष्णु भगवान् एक ब्राह्मण का वेश धारण करके धरती पर चले आए। साथ ही, वरूण देव ने रावण के पेट में प्रवेश किया। जैसे ही वरुण देव रावण के पेट में घुसे। रावण को बड़ी तीव्र लघुशंका लगी। लघु शंका करने के पहले रावण को शिवलिंग किसी के हाथ में देना था। तभी वहां से ब्राह्मण वेश में विष्णु भगवान गुजरे रावण ने उन्हें थोडी देर शिवलिंग पकड़ने का आग्रह किया। वह खुद लघुशंका करने चला गया, लेकिन उसके पेट में तो वरुण देव घुसे हुए थे। रावण के बहुत देर तक न आने पर ब्राह्मण ने शिवलिंग को नीचे रख दिया। जैसे ही शिवलिंग नीचे स्थापित हुआ वरुण देव रावण के पेट से निकल गए।


 

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