जब भी इस संसार में कोई अवतारी चेतना आई...

Edited By ,Updated: 24 Jan, 2017 03:35 PM

inspirational context about consciousness

संसार तभी आनंद देगा जब इसमें रहने वाला, यहां अपना जीवन बिताने वाला मनुष्य भावनाओं और संवेदनाओं से भरा होगा। भाव-संवेदना

संसार तभी आनंद देगा जब इसमें रहने वाला, यहां अपना जीवन बिताने वाला मनुष्य भावनाओं और संवेदनाओं से भरा होगा। भाव-संवेदना रूपी गंगोत्री के सूख जाने पर व्यक्ति निष्ठुर बनता चला जाता है। आज का सबसे बड़ा दुर्भिक्ष इन्हीं भावनाओं के क्षेत्र का है। जब भी इस संसार में कोई अवतारी चेतना आई है, उसने एक ही कार्य किया। उसने मनुष्य के अंदर से उस गंगोत्री के प्रवाह के अवरोध को हटाया और सृजन-प्रयोजनों में उसे नियोजित किया। कुछ कथानकों द्वारा व दृष्टांतों के माध्यम से इस तथ्य को भली-भांति समझा जा सकता है।


देवर्षि नारद एवं वेद व्यास के वार्तालाप के एक तथ्य से स्पष्ट होता है कि मानवीय गरिमा का उदय जब भी होता है, सबसे पहले भाव चेतना का जागरण होता है। तभी वह ईश्वर पुत्र की गरिमामय भूमिका निभा पाता है। चैतन्य जैसे अंतर दृष्टि सम्पन्न महापुरुष भी शास्त्र-तर्क मीमांसा के युग में इसी चिंतन को दे गए। भाव श्रद्धा के प्रकाश में मनुष्यता जोकि इस समय में कहीं खो गई है, उसे पुन: पाया जा सकता है। पीतांबरा मीरा जीवन भर करुणा विस्तार का, ममत्व का ही संदेश देती रहीं। जब संकल्प जागता है तो अशोक जैसा निष्ठुर भी बदल जाता है। अशोक एक मामूली व्यक्ति से अशोक महान बन जाता है। जीसस का जीवन करुणा के जन-जन तक विस्तार का संदेश देता है। दक्षिण अफ्रीका में वकालत सीखने-करने पहुंचे मोहनदास गांधी नामक एक सामान्य शख्स इसी भाव संवेदना के जागरण के कारण एक घटना मात्र से महात्मा गांधी बन गए और जीवन भर आधी धोती पहनकर एक पराधीन राष्ट्र को स्वतंत्र करने में सक्षम हुए। ठक्कर बापा के जीवन में भी यही क्रांति आई। वस्तुत: अवतारी चेतना जब भी सक्रिय होती है, इसी रूप में व्यक्ति को बेचैन करके उसके अंतर मन को आमूलचूल बदल डालती है। 

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