भाग्य को कोसने वाले करेंगे ये काम, कहलाएंगे मंदिर के देवता

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Jan, 2018 11:39 AM

inspirational context for depressed people

किसी भी कार्य में बाधाएं और समस्याएं आ सकती हैं। उन समस्याओं से घबराकर निरुत्साहित हो जाना जीवन से पलायन करने के समान है। शांत दिमाग से समस्याओं का समाधान खोजा जाए तो उनका निराकरण संभव हो सकता है। अपनी समस्या को शांत चित से अगर आपने समझ लिया है तो

किसी भी कार्य में बाधाएं और समस्याएं आ सकती हैं। उन समस्याओं से घबराकर निरुत्साहित हो जाना जीवन से पलायन करने के समान है। शांत दिमाग से समस्याओं का समाधान खोजा जाए तो उनका निराकरण संभव हो सकता है। अपनी समस्या को शांत चित से अगर आपने समझ लिया है तो उसकी आधी शक्ति तो वहीं खत्म हो गई। शांति और धीरज से उसके समाधान पर आप सही ढंग से विचार करेंगे तो आपको प्रकाश की किरण दिखते देर नहीं लगेगी।  आपके ‘स्टार्स फेवरेबल’ हैं या नहीं, इस ओर ध्यान देने की बजाय अपने माइंड को फेवरेबल बनाने की ओर ध्यान दिया जाए तो सचमुच भाग्य बदल सकता है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने एक जगह लिखा है-भाग्य को कोसने में तुम जितना समय लगाते हो, उतना भाग्य के निर्माण में यदि लगाओ तो तुम मंदिर के देवता कहलाओगे और भाग्य तुम्हारा पुजारी।


हमारा जीवन या हमारा भविष्य ठीक वैसा ही बनता है जैसा हम गहराई से सोचते हैं। अपने भाग्य के निर्माता हम स्वयं हैं। हाथ की रेखाओं को हम बदल भी सकते हैं और हमारा प्रयत्न, हमारा पुरुषार्थ सही दिशा में चले तो अपने प्रतिकूल समय को भी हम अच्छे समय में बदल सकते हैं। डेनिस वेटली ने कहा है, ‘‘खुशी तक पहुंचा नहीं जा सकता, उस पर कब्जा नहीं किया जा सकता, उसे अर्जित नहीं किया सकता, पहना या ग्रहण नहीं किया जा सकता। वह हर मिनट को प्यार, गरिमा और आभार के साथ जीने का आध्यात्मिक अनुभव है।’’ 


अध्यात्म एवं उत्साह ही जीवन है। बिना इसके जीवन बोझिल हो जाता है। जीवन के किसी कार्य में सफलता तभी प्राप्त होती है जब उसे भार नहीं निर्भार होकर सम्पन्न किया जाए। किसी भी कार्य को अथवा अपने दायित्व को भार समझकर पूरा करेंगे तो उसका फल कभी अच्छा नहीं होगा।


बहुत से लोग ज्योतिषियों के चक्कर में उलझकर अपने को अनावश्यक ही तनावग्रस्त बना लेते हैं। तथाकथित हस्तरेखाविद् जब किसी को आसन्न संकट की बात कह देते हैं कि अभी तुम्हारा समय प्रतिकूल चल रहा है या आने वाला समय प्रतिकूल है तब आदमी की क्या मन:स्थिति बन जाती है, आप समझ सकते हैं। हमें यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि हमारा भविष्य वैसा ही बन जाता है जैसा हम हृदय से सोचते हैं।

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