जानिए, बैल से संबंधित रहस्यमयी बातें जो कम ही लोग जानते हैं

Edited By ,Updated: 15 Dec, 2016 11:03 AM

inspirational story

सम्पूर्ण मानव जाति की उत्त्पत्ति का स्रोत एक ही है और सभी उसी एक में मिल जाएंगे अर्थात हमारा आदि और अंत एक ही है। हम सभी के देव और देवी भी एक ही हैं और कुछ पूजनीय जीव

सम्पूर्ण मानव जाति की उत्त्पत्ति का स्रोत एक ही है और सभी उसी एक में मिल जाएंगे अर्थात हमारा आदि और अंत एक ही है। हम सभी के देव और देवी भी एक ही हैं और कुछ पूजनीय जीव भी जैसे कि सर्प, गाय आदि। गाय और गौवंश में कुछ तो ऐसा है कि जिसने दुनिया की सभी संस्कृतियों में एक प्रतिष्ठित स्थान अर्जित किया है। वर्तमान समय में 'हौली काऊ' को भारतवर्ष से जोड़ा जाता है पर इतिहास के पन्नों से इस गोजातीय देवी की सर्व उपस्थिति  का पता चलता है।

 

मेसोपोटामिया के निवासी बैल को असाधारण शक्ति और जनन क्षमता का प्रतीक समझ औरोक्स के रूप में उसकी पूजा करते थे। बैल, बेबीलोन देवता एन्न, सिन और मर्दुक का भी चिन्ह था और गाय, देवी ईश्तर की। असीरियन देव निन का भी राज्य चिह्नन मानव - बैल के रूप में था।  प्राचीन बेबीलोन निवासी तथा असीरियन लोगों ने अपने महलों (जिसमें देवताओं का आह्वान करने वाले शिलालेख रखे थे ) की रक्षा करने के लिए,  विशाल पंखों वाले बैलों की प्रतिमाओं का निर्माण किया था। ईरानियों के पास भी उनके महलों की रक्षा के लिए भारी पंखों वाले बैल थे। सेमिटिक कानांइट्स के लिए भी बैल बाल का प्रतीक था और गाय अस्तरते का। प्राचीन मिस्रवासी गाय को हाथोर् के नाम से और बैल को एपिस नाम से पूजते थे। बैल की इतनी महत्ता थी कि एपिस बैल के मरने के बाद उसके शव पर लेप लगाकर  ग्रेनाइट ताबूत में दफनाया जाता था।एक्सोडस के एक लोकप्रिय भाग 32: 1 - 32: 45 में इस बात का उल्लेख है कि किस तरह इजराइल के लोगों ने मोसेस की अनुपस्थिति में एक सोने का बछड़ा बनाकर उसकी पूजा की थी। इस उद्धरण से यह पता चलता है इजराइल के पारम्परिक इतिहास में गाय और बछड़े की कितनी श्रद्धेय स्थिति थी। 

 

पारसी शास्त्रों के अनुसार ‘गवयवोदता’( विशेष रूप से बनाई गई गाय ) अहुरा माजदा द्वारा बनाए गए छह मुख्य भौतिक पदार्थों में से एक है जो कि सभी गुणकारी पशुओं की पूर्वज प्रजनक बन गई। सेल्टिक संस्कृतियों में भी गोजातीय देवी दमोना और बोअन्न की पूजा होती थी। नॉर्स परम्परा में भी अति प्राचीन गाय औधुम्ब्ला का उल्लेख है। यूनान में भी स्त्री और विवाह की देवी हेरा के लिए भी गाय पवित्र पशु था। चीन और जापान की प्राचीन सभ्यताओं में भी गोजातीय पशुओं का सम्मान किया जाता था और गौ मांस का आहार वर्जित था। बैल, भगवान शिव का प्रिय वाहन जोकि नन्दी के रूप में श्रृद्धेय है, सिंधु घाटी की मुद्राओं की मुख्य आकृति है।

 

ऋग्वेद, विश्व का सबसे प्राचीन शास्त्र भी गाय को अदिति और अघ्न्या कहता है अर्थात जिसको टुकड़ों में नहीं काटा जाना चाहिए। अथर्ववेद उसको समृद्धि का मूलस्रोत मानता है (धेनु सदानम् रयीणाम् - अथर्ववेदा 11. 1. 34 )  एक वैदिक यज्ञ में गव्य उत्पादों के प्रयोग का महत्व तो सभी जानते हैं। एक और दिलचस्प बात, भारतीय मंदिरों के प्रवेश द्वार की रक्षा हेतु भी उनके बाहर बैलों की प्रतिमाएं स्थापित की जाती थी।

 

इन सभी तथ्यों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि हमारे पूर्वजों ने चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने से हों, गाय को पूजनीय और पवित्र माना है। मिस्र से लेकर उत्तरी यूरोप तथा पूर्व तक गाय और बैल प्रजनन, शक्ति और प्रचुरता के सार्वभौमिक प्रतीक थे। होली काऊ अर्थात पवित्र गाय किसी एक विशेष धर्म के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इस पूरी दुनिया की सांझी विरासत है।

 

हमें यह नहीं भूलना चाहिए की आधुनिक विज्ञान के अनुसार कुछ सदियों पहले पूरी दुनिया एक बड़ा भू भाग था जो बाद में अलग हुआ। यह भी प्रमाणित हो चुका है कि आरम्भ में सारी पृथ्वी पानी में डूबी हुई थी और दुनिया भर की सभ्यताएं और संस्कृति इस बात से सहमत हैं कि सारी मानव जाति, जीवित बचे लोगों के एक समूह से ही उभरी है चाहे उसे हम मनु की नाव कह लें या नोअहस आर्क या फिर डुकलिओंस चेस्ट या उत्नापिष्टिम् की नाव, सारी मानव जाति का एक ही मूलस्रोत सभी ने स्वीकार किया है। वेदों की गूंज दुनिया के सभी धर्मों में सुनाई देती है।

योगी अश्विनी जी
www.dhyanfoundation.com

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!