Edited By ,Updated: 16 Dec, 2016 02:46 PM
सूफी मान्यता है कि किसी व्यक्ति की समस्या का समाधान तब तक नहीं होता जब तक कि उसके गुरु की कृपा दृष्टि का एक अंश उस पर न पड़े। एक बार एक सूफी संत मृत्युशैया पर थे। उन्हें अपने प्रिय 3
सूफी मान्यता है कि किसी व्यक्ति की समस्या का समाधान तब तक नहीं होता जब तक कि उसके गुरु की कृपा दृष्टि का एक अंश उस पर न पड़े। एक बार एक सूफी संत मृत्युशैया पर थे। उन्हें अपने प्रिय 3 नए शिष्यों के भविष्य की चिंता थी कि इन्हें ज्ञान की ओर ले जाने वाला सही गुरु कहां- कैसे मिलेगा। संत चाहते तो वह किसी सक्षम विद्वान का नाम ले सकते थे मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया और चाहा कि शिष्य स्वयं अपने लिए गुरु तलाशें।
इसके लिए संत ने मन ही मन एक विचित्र उपाय तलाशा। उन्होंने अपने तीनों शिष्यों को बुलाया और कहा कि हमारे आश्रम में जो 17 ऊंट हैं उन्हें तुम तीनों मिलकर इस तरह से बांट लो- सबसे बड़ा इनमें से आधा रखेगा, मंझला एक-तिहाई और सबसे छोटे के पास 9वां हिस्सा हो।
यह तो बड़ा विचित्र वितरण था जिसका कोई हल ही नहीं निकल सकता था। तीनों शिष्यों ने बहुत दिमाग खपाया मगर उत्तर नहीं निकला तो उनमें से एक ने कहा, ‘‘गुरु की मंशा अलग करने की नहीं होगी इसीलिए हम तीनों मिलकर ही इनके मालिक बने रहते हैं, कोई बंटवारा नहीं होगा।’’
दूसरे ने कहा, ‘‘गुरु ने निकटतम संभावित बंटवारे के लिए कहा होगा।’’
परन्तु बात किसी के गले से नहीं उतरी। उनकी समस्या की बात चहुं ओर फैली तो एक विद्वान ने तीनों शिष्यों को बुलाया और कहा, ‘‘तुम मेरे एक ऊंट को ले लो। इससे तुम्हारे पास पूरे 18 ऊंट हो जाएंगे। अब सबसे बड़ा इनमें से आधा यानी 9 ऊंट ले ले। मंझला एक-तिहाई यानी कि 6 ऊंट ले ले, सबसे छोटा 9वां हिस्सा यानी 2 ऊंट ले ले। अब बाकी एक ऊंट बच रहा है जो मेरा है तो उसे मैं वापस ले लेता हूं।’’
शिष्यों को उनका नया गुरु मिल गया था। गुरु शिष्यों की समस्या में स्वयं भी शामिल जो हो गया था।