हमारा शरीर नियमों की किताब, अध्ययन से सुलझती हैं जीवन की मुश्किलें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Sep, 2017 10:29 AM

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हमारा शरीर अपने आप में एक ऐसी किताब है, जो है तो सबके पास, मगर इसे कम ही लोग पढ़ पाते

हमारा शरीर अपने आप में एक ऐसी किताब है, जो है तो सबके पास, मगर इसे कम ही लोग पढ़ पाते हैं। जो पढ़ लेते हैं, वह जिंदगी में एक बदलाव ले आते हैं। शरीर के हर अंग से जीवन के नियम निकलते हैं। हड्डियां हमें अनुशासन सिखाते हुए बताती हैं कि हमें किस ओर कितना झुकना है, उसके विपरीत झुकने पर वह टूट सकती हैं। 

शरीर के सबसे ऊपर मौजूद त्वचा आपको सहना बताएगी, धैर्य और दूसरे विचारों को समेटना और फैलाना सिखाएगी।  त्वचा को खिंचना, उधड़ना और फिर से बनना आता है। त्वचा हमें समाज में जीने की कला सिखाती है। बहुत बार हमें नुक्सान पहुंचाया जाएगा, मगर हमें खाल की तरह उसको फौरन भरना आना चाहिए। मुश्किल घड़ी में सिकुड़ कर खुद को बचाना भी आना चाहिए। एक बार पूरे शरीर को आईने के सामने खड़े होकर देखिए, उस तरह नहीं, जैसे कि ये अंग दिखते हैं बल्कि उस तरह जैसे इन्हें देखना चाहिए। मस्तिष्क से पांव की उंगलियों तक बिखरी उन पहेलियों को सुलझाइए जो प्रकृति ने हममें डाल दी हैं। 

बत्तीस दांतों के बीच फंसी जुबान भी कुछ इशारे करती है। आंसू निकालती आंखें भी कुछ कहती हैं। शरीर का हर अंग प्रकृति की रचना के संदेश को व्यक्त कर रहा होता है, बस समझने की देर है। त्वचा कहती है कि मुलायम रह कर भी शरीर की रक्षा होती है फिर उस त्वचा में छुपा मांस कहता है कि जब बहुत मुलायम रहने से काम न बने तो थोड़ा सख्त हो जाओ, मगर थोड़ा दबकर भी चलने का रास्ता खुला रखो। हड्डी कहती है कि एक स्तर वह भी आएगा जब तुम्हें न मुलायम होना है और न दबना है।

शरीर की रचना में ही प्रकृति ने अध्यात्म को गूंथ दिया है। जिस दिन अपने शरीर को समझकर उस पर विजय पा ली, वह शिखर का समय होगा। यह शरीर ही तो समाज है। इसमें मौजूद गुण-अवगुण समाज के ही तो लक्षण हैं। वक्त रहते इन्हें जानकर समाज का इलाज कीजिए। यह समाज हमारे आपके शरीर से ही स्वस्थ होगा।

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