Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Sep, 2017 12:50 PM
ईश्वर चंद विद्यासागर के बचपन की यह एक सच्ची घटना है। एक दिन सुबह उनके घर के द्वार पर एक
ईश्वर चंद विद्यासागर के बचपन की यह एक सच्ची घटना है। एक दिन सुबह उनके घर के द्वार पर एक भिखारी आया। उसको हाथ फैलाए देखकर उनके मन में करुणा उमड़ी। वह तुरंत घर के अंदर गए और उन्होंने अपनी मां से कहा कि वह उस भिखारी को कुछ दे दें। मां के पास उस समय कुछ भी नहीं था सिवाय उनके कंगन के। उन्होंने अपना कंगन उतारकर ईश्वर चंद विद्यासागर के हाथ में रख दिया और कहा कि जिस दिन तुम बड़े हो जाओगे उस दिन मेरे लिए दूसरा बनवा देना, अभी इसे बेचकर जरूरतमंदों की सहायता कर दो।
बड़े होने पर ईश्वर चंद विद्यासागर अपनी पहली कमाई से अपनी मां के लिए सोने के कंगन बनवाकर ले गए और उन्होंने मां से कहा, ‘‘मां, आज मैंने बचपन का तुम्हारा कर्ज उतार दिया।’’
उनकी मां ने कहा, ‘‘बेटे, मेरा कर्ज तो उस दिन उतर पाएगा जिस दिन किसी और जरूरतमंद के लिए मुझे ये कंगन दोबारा नहीं उतारने होंगे।’’
मां की सीख ईश्वर चंद विद्यासागर के दिल को छू गई और उन्होंने प्रण किया कि वह अपना जीवन गरीब-दुखियों की सेवा करने और उनके कष्ट हरने में व्यतीत करेंगे तथा उन्होंने अपना सारा जीवन ऐसा ही किया।
महापुरुषों के जीवन कभी भी एक दिन में तैयार नहीं होते। अपना व्यक्तित्व गढ़ने के लिए वे कई कष्ट और कठिनाइयों के दौर से गुजरते हैं और हर महापुरुष का जीवन कहीं न कहीं अपनी मां की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित रहता है।