घर की आंतरिक साज-सज्जा वास्तुशास्त्र के अनुसार न करने पर बढ़ते हैं बुरे प्रभाव

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Sep, 2017 11:47 AM

interior decoration of home according to vastu shastra

सभी धर्मों के अनुयायी अपने-अपने देवी-देवताओं पर असीम श्रद्धा एवं विश्वास रखते हैं तथा उनसे संबंधित तस्वीरों एवं मूर्तियों को अपने-अपने घरों में सजा कर रखते हैं। आंतरिक सज्जा के साथ ही विभिन्न प्रकार के संकट दूर करने के लिए भी

सभी धर्मों के अनुयायी अपने-अपने देवी-देवताओं पर असीम श्रद्धा एवं विश्वास रखते हैं तथा उनसे संबंधित तस्वीरों एवं मूर्तियों को अपने-अपने घरों में सजा कर रखते हैं। आंतरिक सज्जा के साथ ही विभिन्न प्रकार के संकट दूर करने के लिए भी घरों में जहां-तहां देवी-देवताओं के चित्र तथा स्वास्तिक आदि बना दिए जाते हैं। दीवारों पर अनेक प्रकार के श्लोक या स्लोगन लिख दिए जाते हैं। 


वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित दिशाओं में देवी-देवताओं की तस्वीरों, मूर्तियों, श्लोकों, स्लोगनों आदि को रखने या लिखने पर ही घर-व्यापार में सुख, शांति एवं समृद्धि की वृद्धि होती है। घर की आंतरिक साज-सज्जा वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुसार न करने पर बुरे प्रभावों में वृद्धि होती है।


गृह स्वामी या कार्यालय के मालिक के कक्ष में गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर ठीक सामने लगाई जानी चाहिए। पीठ के पीछे चित्र लगाना दोषकारक है।


अनेक व्यक्ति अपने घर के दरवाजे के ऊपर स्वास्तिक का निशाना बना देते हैं। यह गलत है। दरवाजे के दोनों ओर स्वास्तिक का निशाना बना कर उसके ऊपर वाले भाग पर ॐ या कलश बनाना लाभदायक एवं मंगलकारी है। जोड़ा स्वास्तिक का चिन्ह ही बनाया जाना चाहिए।


भवन अथवा कक्ष के मध्य भाग में सूर्य अथवा विष्णु का निवास माना जाता है। यह स्थान हृदय के भाग की तरह होता है। इस स्थान पर कभी भी भारी वस्तु अर्थात भारी फर्नीचर, अलमारी आदि नहीं रखनी चाहिए।


आज के समय में व्यापारिक संस्थानों में अधिकांश व्यक्ति श्री गणेश की मूर्त की स्थापना कर देते हैं, जो वास्तु सम्मत नहीं है। अगर कोई मूर्त लगानी ही हो तो मूर्त के बजाय तस्वीरों का ही उपयोग करना अच्छा है।

 
व्यापारिक संस्थानों, आफिस आदि में अगर कोई मूर्त लगानी ही हो तो इस प्रकार लगानी चाहिए कि आफिस अथवा व्यावसायिक संस्थान में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की नजर उस पर आसानी से पड़े। 


घर में पूजा स्थल इस प्रकार बनाया जाए कि पूजा करने वाला व्यक्ति पूर्व या पश्चिम दिशा में बैठकर पूजा कर सके। एक देवी-देवता के विविध रूपों वाली तस्वीर भी एक स्थान पर रहना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं माना जाता।


पूर्व दिशा में इंद्र देव का आधिपत्य होता है। यह सर्वाधिक प्रभावशाली दिशा है। कार्यालयों या अन्य स्थानों पर यदि पूर्व दिशा की ओर मुख करके काम किया जाए तो मन में शांति एवं अच्छे विचारों का सृजन होता है।


दक्षिण दिशा के स्वामी यम हैं। इन्हें न्यायकर्ता माना जाता है। कार्यालय में इस दिशा की ओर मुख करके कार्य करने वाला व्यक्ति व्यवसाय में वृद्धि करता है। सक्रिय चिंतन एवं बिजनैस डीलिंग की सफलता इस दिशा का मुख्य कार्य होता है।


दक्षिण-पश्चिम कोण के अधिपति नैत्रदत हैं। यह विनाश की देवी हैं। इसके प्रभाव से व्यक्ति निंदाग्रस्त, निर्धन एवं जुआरी होता है। अत: इस कोण में बैठकर कोई ठोस निर्णय नहीं लेना चाहिए। इस दिशा में बैठकर काम करने वाला व्यक्ति दिमागी तौर पर उत्तेजित रहता है तथा क्रूर निर्णय लेने में भी हिचकता नहीं।


पश्चिम दिशा पर वरुण का आधिपत्य है। इस दिशा की ओर मुख करके पढऩा-लिखना तथा पूजा-पाठ करना शुभ माना जाता है।


उत्तर दिशा में कुबेर का स्थान है। इस दिशा में मूल्यवान वस्तुओं को रखना शुभकारक है। इस दिशा का संबंध धन से है।


पूजा स्थल पर श्रीयंत्र, त्रिकोण यंत्र, सर्वव्याधि शांति यंत्र, दुर्गायंत्र, गणेश यंत्र आदि को रख कर उनकी पूजा-उपासना आदि करना शुभ कारक माना जाता है। यंत्रों का निर्माण एवं उनकी प्राण-प्रतिष्ठा शुभ लग्नों में होनी चाहिए।


उत्तर-पश्चिम कोण में वायु का निवास है। इस दिशा में मुख करके कार्य करने से बेचैनी का अनुभव होता है।


फैक्टरियों में वायव्य कोण में मशीन नहीं लगानी चाहिए। इससे आशानुरूप सफलता नहीं मिल पाती तथा मशीन अक्सर खराब होती रहती है।


देवी-देवताओं के चित्र शौचालय से लगी दीवारों पर नहीं टांगने चाहिएं। जहां तक संभव हो देवी-देवताओं के चित्रों को आसन बिछा कर उन पर ही रखा जाना चाहिए। इस पद्धति से हमेशा उनकी कृपा दृष्टि प्राप्त होती रहती है।


 

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!