Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Mar, 2018 04:03 PM
हर रिश्ते में प्रेम व सम्मान होना बहुत आवश्यक होता है, और यदि बात पति-पत्नी के रिश्ते की हो तो इसमें प्रेम, सम्मान, संयम आदि होना बहुत जरूरी होता है। लेकिन आज कल की पीढ़ी के लिए इसे बरकरार रखना आसान काम नहीं है।
हर रिश्ते में प्रेम व सम्मान होना बहुत आवश्यक होता है, और यदि बात पति-पत्नी के रिश्ते की हो तो इसमें प्रेम, सम्मान, संयम आदि होना बहुत जरूरी होता है। लेकिन आज कल की पीढ़ी के लिए इसे बरकरार रखना आसान काम नहीं है। क्योंकि आज कल के रिश्तों में प्रेम कब विरोध बन जाता है, कब परिस्थितियां बदल जाती है, लोग यह समझ ही नहीं पाते। तो आईए आज हम आपको रामचरित मानस के बालकांड के रामसीता विवाह के प्रसंग में शादी के इच्छुक और शादीशुदा दोनों तरह के लोगों के लिए दिए गए कुछ एेसे ही सटीक उपाय बताएं जो आपके जीवन को बेहतर बना सकते हैं।
प्रसंग
सीता का स्वयंवर चल रहा था। शिवजी का धनुष तोड़ने वाले से सीता का विवाह किया जाएगा, यह शर्त थी सीता के पिता जनक की। कई राजाओं और वीरों ने प्रयास किया लेकिन धनुष किसी से हिला तक नहीं। तक ऋषि विश्वामित्र द्वारा श्रीराम को आज्ञा दी गई। श्रीराम ने सबसे पहले अपने गुरु को नमन किया। फिर शिव का ध्यान करके धनुष को प्रणाम किया। देखते ही देखते, धनुष को उठाया और उसे किसी खिलौने की तरह तोड़ दिया।
क्या किसी ने यह सोचा कि आखिर धनुष को ही क्यों शर्त के तौर पर सभा में रखा गया। क्यों उसे तोड़ गया। वास्तव में इसके मर्म में चलें तो इस प्रसंग को आसानी से समझा जा सकता है। अगर दार्शनिक रूप से समझें तो धनुष अहंकार का प्रतीक है। अहंकार जब तक हमारे भीतर हो, हम किसी के साथ अपना जीवन नहीं बीता सकते। अहंकार को तोड़कर ही गृहस्थी में प्रवेश किया जाए। इसके लिए विवाह करने वाले में इतनी परिपक्वता और समझ होना आवश्यक है।
भारतीय परिवार में अक्सर विवाह या तो नासमझी में किया जाता है या फिर आवेश में। आवेश सिर्फ क्रोध का नहीं होता, भावनाओं का होता है। फिर चाहे प्रेम की भावना में बहकर किया गया हो लेकिन अक्सर लोग अपनी गृहस्थी की शुरुआत ऐसे ही करते हैं। विवाह एक दिव्य परंपरा है, गृहस्थी एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है लेकिन हम इसे सिर्फ एक रस्म के तौर पर देखते हैं। गृहस्थी बसाने के लिए सबसे पहले भावनात्मक और मानसिक स्तर पर पुख्ता होना होता है। हम अपने आप को परख लें। घर के जो बुजुर्गवार रिश्तों के फैसले तय करते हैं वे अपने बच्चों की स्थिति को समझें। क्या बच्चे मानसिक और भावनात्मक स्तर पर इतने सशक्त हैं कि वे गृहस्थी जैसी जिम्मेदारी को निभा लेंगे।
जीवन में उत्तरदायित्व कई शक्लों में आता है। सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है शादी करके घर बसाना। गृहस्थ जीवन को कभी भी आवेश या अज्ञान में स्वीकार न करें, वरना इसकी मधुरता समाप्त हो जाएगी। आवेश में आकर गृहस्थी में प्रवेश करेंगे तो ऊर्जा के दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाएगी। हो सकता है रिश्तों में क्रोध अधिक बहे, प्रेम कम। यदि अज्ञान में आकर घर बसाएंगे, तब हमारे निर्णय परिपक्व व प्रेमपूर्ण नहीं रहेंगे।