Edited By ,Updated: 05 Feb, 2017 02:07 PM
मंदिर जाने पर हम अपने जूते-चप्पल बाहर उतारकर जाते हैं। जूते-चप्पल पहनकर अंदर जाने पर इसे भगवान का अपमान माना जाता है। लेकिन मध्यप्रदेश की राजधानी
मंदिर जाने पर हम अपने जूते-चप्पल बाहर उतारकर जाते हैं। जूते-चप्पल पहनकर अंदर जाने पर इसे भगवान का अपमान माना जाता है। लेकिन मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में माता का एक ऐसा मंदिर है, जहां मन्नत पूरी होने पर नई चप्पल या सैंडिल चढ़ाई जाती हैं।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के कोलार इलाके में एक छोटी सी पहाड़ी पर मां दुर्गा का सिद्धिदात्री पहाड़वाला मंदिर स्थित हैं। इसे जीजीबाई मंदिर भी कहा जाता है। कहा जाता है कि 18 वर्ष पूर्व यहां अशोकनगर से रहने आए आेम प्रकाश महाराज ने मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना के साथ शिव-पार्वती का विवाह कराया था और खुद कन्यादान किया था। तब से वे मां सिद्धदात्री को अपनी बेटी मानकर उनकी पूजा करते हैं। वे माता को अपनी बेटी मानकर उनका ध्यान रखते हैं।
कहा जाता है कि भक्तजन यहां माता की पूजा-अर्चना कर मन्नत मांगते हैं। जब उनकी मन्नत पूर्ण हो जाती है तो वे मां सिद्धिदात्री को नई चप्पल या सैंडिल अर्पित करते हैं। वहां पर चप्पल ही नहीं भक्त गर्मियों में चश्मा, टोपी और घड़ी भी अर्पित करते हैं। मां दुर्गा की बेटी की तरह देखभाल की जाती है। दिन में माता के 2-3 बार वस्त्र बदले जाते हैं। भक्तों को जब आभास होता है कि माता चढ़ाए वस्त्रों से प्रसन्न नहीं है तो 2-3 घंटों में उनके वस्त्र बदल दिए जाते हैं। कहा जाता है कि माता के कुछ भक्त विदेशों में भी बस गए हैं। जो वहां से मां के लिए मन्नत स्वरूप चप्पलें भेजते हैं। भक्तों द्वारा माता को चढ़ाई गई चप्पलें एक दिन के बाद जरूरतमंदों में बांट दी जाती है।