चमत्कारी मंदिर: यहां मदिरा पान करते हैं भगवान कालभैरव, ग्रह दोषों का होता है निवारण

Edited By ,Updated: 21 Nov, 2016 10:52 AM

kaalbhairav mandir ujjain

मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर से लगभग 8 कि.मी. दूर शिप्रा नदी के तट पर कालभैरव का मंदिर स्थित है। यहां विराजित भगवान कालभैरव को प्रसाद के रुप में शराब अर्पित

मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर से लगभग 8 कि.मी. दूर शिप्रा नदी के तट पर कालभैरव का मंदिर स्थित है। यहां विराजित भगवान कालभैरव को प्रसाद के रुप में शराब अर्पित की जाती है। कहा जाता है कि भगवान कालभैरव मदिरा का पान भी करते हैं। भगवान कालभैरव के मुंह के आगे मदिरा से भरा प्याला रखने पर वह खाली हो जाता है। यहां शराब चढ़ाने के पीछे लोगों का मानना है कि वे अपने दुर्गुणों को भगवान के आगे छोड़ देते हैं। प्राचीन समय में यहां सिर्फ तांत्रिकों को ही आने की अनुमति थी। वे ही यहां तांत्रिक क्रियाएं करते थे। कालान्तर में ये मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया गया। कुछ सालों पहले तक यहां पर जानवरों की बलि भी चढ़ाई जाती थी। लेकिन अब यह प्रथा बंद कर दी गई है। अब भगवान भैरव को केवल मदिरा का भोग लगाया जाता है। 

 

मंदिर में भगवान कालभैरव को कई सालों से शराब का भोग लगाया जाता है। कालभैरव के सामने शराब का प्याला रखने से वह अपने आप खाली हो जाता है। कुछ लोगों ने भगवान कालभैरव की प्रतिमा अौर पूरे मंदिर परिसर का निरीक्षण भी कर लिया लेकिन वे नहीं जान पाए कि शराब कहां जाती है। भक्त इसे कालभैरव का चमत्कार मानते हैं। कहा जाता है कि पहले लोग देशी शराब ही अर्पित करते थे परंतु अब वक्त बदलने के साथ भक्त अपनी सहूलियत के अनुसार विदेशी शराब भी अर्पित करते हैं। कहा जाता है कि यदि भैरव बाबा शराब पी ले तो भक्त की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। 

 

पुराणों के अनुसार एक बार भगवान ब्रह्मा ने भोलेनाथ का अपमान कर दिया था। जिसके कारण भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए अौर उनके नेत्रों से कालभैरव प्रकट हुए थे। भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न हुए कालभैरव ने गुस्से में आकर ब्रह्मा का पांचवा सिर काट दिया था। जिसके कारण उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। 

 

मंदिर का निर्माण राजा भद्रसेन ने करवाया था। मंदिर के चारों अोर पत्थर की लंबी दीवार बनी हुई है। कुछ समय बाद राजा जयसिंह ने इस मंदिर का पुननिर्माण करवाया था। मंदिर में भगवान कालभैरव के साथ भोलेनाथ, देवी पार्वती, श्रीगणेश अौर श्रीविष्णु की प्रतिमाएं स्थापित हैं। भगवान कालभैरव का यहां क्षेत्रपाल के रुप में पूजन किया जाता है। इसके साथ ही कुलदेवता के रुप में भी इनकी पूजा की जाती है। गुरुपूर्णिमा और रविवार को यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है। 

 

कालभैरव मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर आते ही कुछ दूर जाने पर बांई अोर पातालभैरवी का स्थान है। इसके चारों अोर दीवार है। इसके अंदर संकरे रास्ते से होकर जाते हैं। 10-12 सीढ़ियां उतरने के बाद तलघर आता है। इसकी दीवार पर पाताल भैरवी की प्रतिमा बनी हुई है। माना जाता है कि प्राचीन समय में योगीजन इसी तलघर में बैठकर ध्यान करते थे। कहा जाता है कि यहां आने से कालभैरव की कृपा से ग्रहों की बाधाएं दूर होती हैं। मंदिर में भगवान कालभैरव को भोग लगाने से सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। 
 

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