देवी उपासना से ही कन्हैया ने राक्षसों एवं कंस का किया था वध

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Mar, 2018 01:03 PM

kanhaiya slaughtered monsters and buns only by worshiping goddess

मथुरा: देवी मां की उपासना कर ही श्रीकृष्ण एवं बलराम ने कंस समेत अनेक राक्षसों का वध करने के कारण उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्रवासी नवरात्रि में देवी उपासना में लीन हो जाते हैं और कान्हा की नगरी इस समय देवीनगरी नजर आने लगती है। कन्हैया की नगरी को तीन...

मथुरा: देवी मां की उपासना कर ही श्रीकृष्ण एवं बलराम ने कंस समेत अनेक राक्षसों का वध करने के कारण उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्रवासी नवरात्रि में देवी उपासना में लीन हो जाते हैं और कान्हा की नगरी इस समय देवीनगरी नजर आने लगती है। कन्हैया की नगरी को तीन लोक से न्यारी इसलिए कहा जाता है कि नवरात्रि में मंदिरो से देवी के जयकार की प्रतिध्वनि इतनी तेजी से होती है कि कान्हा की नगरी एक बार तो देवीनगरी बन जाती है। आज से शुरू हुए नवरात्रि में यहां ऐसा ही वातावरण बन गया है। ब्रज संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर अधिकार रखने वाले रामानुज संप्रदाय के शंकराचार्य कृष्णदास कंचन महाराज ने कहा कि नवरात्रि के अवसर पर कन्हैया की नगरी इसलिए देवी नगरी बन जाती है कि श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों में देवी के प्रति भक्ति भाव जागृत करने के लिए स्वयं भी उदाहरण पेश किया था। श्रीकृष्ण द्वारा पूजित होने के कारण यहां ऐसे-ऐसे देवी मंदिर हैं जिन्होंने अपने सच्चे भक्तों को कभी निराश नही किया। भागवत के 10वें स्कंध के 22वें अध्याय के अनुसार ब्रज में कात्यायनी नामक शक्तिपीठ स्थापित है जिसकी आराधना ब्रजवासी करते रहे हैं।

 

उन्होंने इस संबंध में कहा कि पुराणों के अनुसार कंकाली से लेकर चामुण्डा देवी मंदिर तक अंबिका वन हुआ करता था। इस क्षेत्र के भैरव स्वयं भूतेश्वर हैं तथा वर्तमान में महाविद्या के नाम से पूजी जाने वाली देवी ही तत्कालीन अंबिका हैं। कृष्ण जन्म के पश्चात नंदबाबा जात कर्म करने यहीं आए थे तथा यहीं आकर कृष्ण ने कंस को मारने की योजना बनाई थी। पुरातत्ववेत्ता वासुदेव शरण अग्रवाल के वक्तव्य का जिक्र करते हुए कचन महाराज ने कहा कि मौर्य-शुंग काल के समय बौद्ध, हिंदू एवं जैन तीनों ही धर्मों में देवी की आराधना समान रूप से होती रही है तथा वर्तमान में भी लोग बच्चे के जन्म पर षष्ठी देवी की पूजा करते हैं जिसे छठी पूजन कहा जाता है। यह परंपरा कुषाण काल से ही चली आ रही है। मथुरा में खुदाई के दौरान षष्ठी देवी की प्रतिमा भी प्राप्त हुई है। उन्होंने बताया कि देवी चमत्कारों से जुड़ा कैंट का काली मंदिर है जो देवी भक्त मुकुंदराम चौबे नौ घरवाले के स्वप्न की देन है। इसके इतिहास के बारे में वर्तमान महंत दिनेश चतुर्वेदी नौ घरवालों ने बताया कि एक बार देवी मां मुकुंदराम चौबे के स्वप्न में आकर आदेश दिया कि वह जयपुर जाएं और वहां से उन्हें लेकर आएं तथा कैंट बिजलीघर के पास उन्हें स्थापित करें। इसके बाद वह जयपुर गए और मां को लेकर यहां आए। इस स्थान पर जब देवी मां की प्राण प्रतिष्ठा हुई तो मां ने उनकी परीक्षा ली। एक समय ऐसा लगा कि बिजली विभाग के अधिकारी इस मंदिर को तोड़ ही देंगे लेकिन माई के चरणों में बैठे मुकुंदराम के अश्रुधारा बह निकली और मां ने भक्त की लाज रख ली तथा अधिकारी का ही स्थानांतरण हो गया।

 

महंत दिनेश चतुर्वेदी नौ घरवालों ने बताया कि उसके बाद समय-समय पर इस मंदिर को तोडने के प्रयास हुए पर माई ने अपने भक्त की लाज हमेशा रख ली और या तो मां के दर्शन के बाद अधिकारी का मन बदल गया या फिर उस पर ऐसी मुसीबत आई कि वह मां के शरणागत हुआ। मंदिर तोडने पर उतारू कई अधिकारियों को जिले से अपना बोरिया बिस्तर बांधना ही पड़ा। उन्होंने बताया कि माई के आशीर्वाद के चमत्कार के कारण वर्तमान में इस मंदिर में दर्शन के लिए शाम से शुरू हुई लाइन देर रात तक समाप्त होने का नाम नही लेती है।आज तो सुबह से ही देवी पूजन करनेवालों का तांता लग गया है। इतिहास साक्षी है कि श्रीकृष्ण ने भी कुछ राक्षसों का बध करने के लिए देवी का अशीर्वाद लिया था। श्रीकृष्ण और बलराम कंस का बंध किस प्रकार कर सके इस संबंध में बगुलामुखी मंदिर के सेवायत आचार्य अवधकिशोर चतुर्वेदी ने बताया कि महाशक्ति विद्या और अविद्या के रूप में विराजमान हैं। जहां विद्या रूप में ये प्राणियों के लिए मोक्ष प्रदायिनी हैं वहीं अविद्या रूप में वे भोग का कारण हैं। उन्होंने बताया कि श्रीमद् भागवत में प्रसंग है कि जब दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में शिव को आमंत्रित नही किया फिर भी भगवती सती ने जाने का आग्रह किया और रोकने पर वे क्रोधित हुईं तो उनके विकराल रूप को देखकर भगवान शिव भागने लगे। शिव को भागने से रोकने के लिए दसों दिशाओं में सती ने अपनी अधौभूता दस देवियों को प्रकट किया था। ये दस देवियां काली, तारा, षोडसी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, छिन्नमस्ता,धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला, महाविद्या के नाम से जानी जाती हैं। उनका कहना है कि श्रीकृष्ण ने ब्रजभूमि में विभिन्न लीलाएं की थीं। कंस का वध करने के पहले कन्हैया और बलराम ने बगुलामुखी देवी का आशीर्वाद लिया था और फिर कंस टीले पर उनका वध किया था।

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