26 मई को है करवीर व्रत: जानें, महत्व और पूजन का तरीका

Edited By ,Updated: 25 May, 2017 02:06 PM

karveer fast on may 26 learn importance and method of worship

सूर्य सर्वभूत स्वरूप परमात्मा है। ये ही भगवान्‌ भास्कर, ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र बनकर जगत्‌ का सृजन, पालन और संहार करते हैं इसलिए इन्हें त्रयीतनु कहा गया है। सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा जी के मुख से ऊँ शब्द प्रकट हुआ था,

सूर्य सर्वभूत स्वरूप परमात्मा है। ये ही भगवान्‌ भास्कर, ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र बनकर जगत्‌ का सृजन, पालन और संहार करते हैं इसलिए इन्हें त्रयीतनु कहा गया है। सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा जी के मुख से ऊँ शब्द प्रकट हुआ था, वही सूर्य का प्रारम्भिक सूक्ष्म स्वरूप था। तदोपरान्त भूः भुव तथा स्व शब्द उत्पन्न हुए। ये तीनों शब्द पिंड रूप में ऊँ में विलीन हए तो सूर्य को स्थूल रूप मिला। सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न होने से इसका नाम आदित्य पड़ा। चक्र, शक्ति, पाश, अंकुश सूर्य देवता के प्रधान आयुध हैं। सूर्य के अधिदेवता शिव हैं और प्रत्यधि देवता अग्नि हैं। सूर्य देव की दो भुजाएं हैं, वे कमल के आसन पर विराजमान रहते हैं। उनके दोनों हाथों में कमल सुशोभित रहते हैं। उनकी कान्ति कमल के भीतरी भाग की सी है और वे सात घोड़ों पर सात रस्सियों से जुड़े रथ पर आरुढ़ रहते हैं। सूर्य देवता का एक नाम सविता भी है। सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा 6वर्ष की होती है। रत्न माणिक्य है। सूर्य की प्रिय वस्तुएं सवत्सा गाय, गुड़, तांबा, सोना एवं लाल वस्त्र आदि हैं। सूर्य की धातु सोना व तांबा है। सूर्य की जप संख्या 7000 है। 


कल 26 मई ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तिथि पर करवीर व्रत करने का विधान है। यह व्रत सूर्य देव को समर्पित है। इस दिन सूरज देव के निमित्त पूजन करना शुभ फलदायी होता है।
इस दिन व्रत रखने का विधान है। शास्त्र कहते हैं, इस व्रत को सावित्री, सरस्वती, सत्यभामा, दमयंती आदि ने भी किया था। 


भविष्य पुराण के अनुसार सूर्य भगवान को यदि एक आक का फूल अर्पण कर दिया जाए तो सोने की दस अशर्फियां चढ़ाने का फल मिलता है। भगवान आदित्य को चढ़ाने योग्य कुछ फूलों का उल्लेख वीर मित्रोदय, पूजा प्रकाश (पृ.257) में है। रात्रि में कदम्ब के फूल और मुकुर को अर्पण करना चाहिए तथा दिन में शेष सभी फूल। बेला दिन में और रात में भी चढ़ाया जा सकता है। निषिद्ध फूलों का भी जानना आवश्यक है।


ये हैं- गुंजा, धतूरा, अपराजिता, भटकटैया, तगर इत्यादि।


इसके अतिरिक्त इस व्रत में कनेर के वृक्ष की पूजा भी की जाती है। इस विधि से करें पूजन

 

सबसे पहले पेड़ के तने को लाल वस्त्र ओढ़ कर ऊपर से लाल मौली बांध दें।


जल अर्पित करें।


एक टोकरी में सप्तधान्य (सात प्रकार का अनाज) डालकर इस मंत्र का जाप करें
ऊं आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मत्र्यंच हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।। फिर इस साम्रगी को किसी जनेऊधारी ब्राह्मण को दान दे दें।
 

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