Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Sep, 2017 11:54 AM
मोबाइल से अवांछित मैसेज तुरंत डिलीट कर दिए जाते हैं। जूतों पर लगी मिट्टी हमें पल भर भी नहीं सुहाती। भोजन करते समय प्लेट में रखी सामग्री वस्त्रों पर गिर जाए तो हम तुरंत धब्बों को साफ
मोबाइल से अवांछित मैसेज तुरंत डिलीट कर दिए जाते हैं। जूतों पर लगी मिट्टी हमें पल भर भी नहीं सुहाती। भोजन करते समय प्लेट में रखी सामग्री वस्त्रों पर गिर जाए तो हम तुरंत धब्बों को साफ कर देते हैं। तो फिर मन के पटल पर अंकित, उसे कलुषित करने वाले कितने ही विकारों को हम सारी उम्र लिए क्यों घूमते रहते हैं।
क्यों नहीं उन्हें भी समय-समय पर प्रवाहित कर अपने अंतर को निर्मल कर लेते। वैसे भी विकार के जनक व्यवहार या प्रिय-अप्रिय वचन हमें सुख नहीं देते। वे तो केवल निमित्त मात्र बनते हैं हमारे अंदर भी वैसे ही विकार उत्पन्न करने के। कटु-वचन बोलने वाले, अभद्र व्यवहार करने वाले को उसी की भाषा में जवाब देकर हम खुद को संस्कार-विहीन बना उसी के स्तर पर खड़ा कर देते हैं।
तन-मन को स्वस्थ रखने का एक ही मार्ग है कि हम इन विकारों के प्रति क्षमा-भाव को वाणी के साथ-साथ व्यवहार से भी अभिव्यक्त करें। इससे हमारा अहंकार भी कम होगा और संभव है हमारी विनम्रता से प्रभावित होकर सामने वाले की मनोवृत्ति भी बदल जाए। अक्सर लोगों की परेशानी सुनकर हम बड़ी सरलता से कह देते हैं कि छोटी-सी बात है, भूल जाओ। मगर इस बात को क्या हम कभी खुद भी चरितार्थ करते हैं? दिन भर के सारे अप्रिय प्रसंगों को सोने से पहले भुला देते हैं या उनके आक्रोश की अग्नि जलाकर खुद जलते रहते हैं?
आक्रोश और प्रतिशोध की नकारात्मक भावनाएं अपने साथ संजोए रखने पर वे हम पर ही घातक प्रभाव छोड़ती रहती हैं। उनसे मुक्ति का एकमात्र उपाय है, क्षमा कर देना।
क्षमा हमारी दिनचर्या को भी सुगम बनाती है, हमें दुर्घटनाओं से बचाती है। क्षमा का कोई एक दिन निश्चित नहीं, यह पल-पल हमारा सुरक्षा-कवच है। लाइन में अपनी बारी की प्रतीक्षा करना, बाएं चलने का नियम, लालबत्ती पर ठहरना, यह सब क्षमा के ही रूप हैं। आतंक और हिंसा में झुलसते मानव को क्षमा ही सुखद, सुगम एवं सरल जीवन-यापन का रास्ता दिखाती है। क्षमा का संदेश है- अभिमान की तुलना में संबंधों की कीमत ज्यादा है। मन से क्षमा करना और क्षमा-भाव के अनुरूप अपने व्यवहार को बदलना ही पूर्ण क्षमा है।