Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Jan, 2018 01:56 PM
एक बार की बात है एक राजा और उसका वजीर भेष बदल कर सैर पर जा रहे थे। अचानक राजा के मन में विचार आया कि लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं? वजीर से सलाह की तो वजीर ने भी सहमति जताई तथा कहा, ‘‘राजन, लोग भी आपके बारे में वही कुछ सोचते हैं जो कुछ आप लोगों...
एक बार की बात है एक राजा और उसका वजीर भेष बदल कर सैर पर जा रहे थे। अचानक राजा के मन में विचार आया कि लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं? वजीर से सलाह की तो वजीर ने भी सहमति जताई तथा कहा, ‘‘राजन, लोग भी आपके बारे में वही कुछ सोचते हैं जो कुछ आप लोगों के बारे में सोचते हैं। फिर भी पुष्टि करने के लिए लोगों से पूछ लेते हैं। ’’
भेस बदला ही था, लोग पहचान नहीं रहे थे। इतने में सामने से एक लकड़हारा आता दिखाई दिया। वजीर ने पहले राजा से लकड़हारे के बारे में विचार जानने चाहे। राजा बोला, ‘‘लकड़हारा बड़ा धूर्त है। इसने जंगल काट-काट कर खाली कर दिए हैं। फिर भी गरीब होने का ढोंग करता है। मेरा तो दिल करता है कि इसकी सिर की लकड़ियों की चिता बना दूं।’’
इतने में लकड़हारा पास आ गया तो वजीर ने पूछा, ‘‘ए भाई! आप यहां के राजा के बारे में क्या सोचते हो? लकड़हारा बोला, ‘‘यहां के राजा के राज में हमें गरीबी से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। कभी महंगाई बढ़ा देता है, तो कभी इसके आदमी हमसे लकडिय़ां छीन लेते हैं। ऐसे क्रूर राजा से तो मौत ही छुटकारा दिला सकती है।’’
तभी सामने से एक बूढ़ी औरत आती दिखाई दी तो वजीर ने राजा के विचार पूछे। राजा, ‘‘यह औरत बहुत बूढ़ी है। पता नहीं कैसे गुजर-बसर कर रही है? चाहता हूं कि इसकी कुछ पैंशन लगा दूं।’’
इतने में बूढ़ी औरत पास आ पहुंची तो वजीर ने उससे भी राजा के बारे में पूछा। बूढ़ी औरत बोली, ‘‘हमारा राजा बड़ा दयावान है और बहुत अच्छा है। मेरी उम्र भी मेरे राजा को लग जाए।’’
इतने में सामने से बनिया आता दिखाई दिया। उसके बारे में राजा के विचार थे, ‘‘यह ब्याजखोर बनिया ब्याज पर ब्याज खाता है। इसने मेरी सारी प्रजा को ही गरीब कर दिया है। मेरा दिल चाहता है कि इसका सारा पैसा छीनकर लोगों में बांट दूं।’’
वजीर ने बनिए से भी राजा के बारे में पूछा तो बनिया बोला, ‘‘ऐसा कंजूस, मक्खीचूस व्यक्ति राजा बनने के योग्य नहीं है, मेरा बस चले तो राजा को गद्दी से उतार कर खजाना लोगों को बांट दूं।’’
सारांश : जो आप लोगों के बारे में सोचते हैं, लोग भी आपके बारे में वही या वैसा ही कुछ सोचते हैं। यानी कि आपके विचार ही वापस आपके पास आ जाते हैं, अत: औरों के बारे में सदा शुभ ही सोचो।
(‘योग मंजरी’ से साभार)