युद्ध प्रारंभ से पूर्व राजा करते थे मां भगवती का आह्वान, जानें नवरात्र से जुड़ी जानकारी

Edited By ,Updated: 04 Apr, 2017 05:11 PM

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आत्मशुद्धि के लिए नवरात्र पर्व में मां भगवती आदि शक्ति की पूजा अत्यंत कल्याणकारी है। जितना परिश्रम हम भौतिक पदार्थों के संग्रह के लिए करते हैं, अगर थोड़ा-सा परिश्रम हम अध्यात्म के लिए करें तो हमारा कल्याण हो जाए।

आत्मशुद्धि के लिए नवरात्र पर्व में मां भगवती आदि शक्ति की पूजा अत्यंत कल्याणकारी है। जितना परिश्रम हम भौतिक पदार्थों के संग्रह के लिए करते हैं, अगर थोड़ा-सा परिश्रम हम अध्यात्म के लिए करें तो हमारा कल्याण हो जाए। अध्यात्म में उन्नति के लिए सत्वगुण का बड़ा ही महत्व है, जिसमें खान-पान का संयम, सदाचार, इंद्रिय निग्रह, राग-द्वेष का परित्याग, अहंकार, काम तथा क्रोध के सर्वथा अभाव इत्यादि से युक्त मनुष्य सत्व गुण का आचरण करता है। भगवद्गीता में स्वयं भगवान कहते हैं : 

 

‘‘युक्ताहारविहारस्थ युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा।।’’


दुखों का नाश करने वाला योग तो यथायोग्य आहार-विहार करने वाले का, कर्मों में यथायोग्य चेष्टा करने वाले का और यथायोग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है। नवरात्र के दिनों में मां के भक्त नौ दिन उपवास रखते हैं अथवा फलाहार पर आश्रित रहते हैं। पवित्रता तथा शुद्धि से नियमपूर्वक नवरात्र पूजन से जीवन में नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।


जब ब्रह्मा जी देवताओं सहित मधु कैटभ नाम के दैत्यों का नाश करने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना करने के लिए वैकुंठ लोक को गए तब उन्होंने भगवान विष्णु जी की निद्रा की स्वामिनी सर्वशक्ति महामाया से प्रार्थना की जोकि अनंतकोटि ब्रह्मांडों की अधीश्वरी, सनातन ब्रह्मस्वरूपा सर्वशक्ति स्वरूपा साक्षात भगवती दुर्गा हैं। ब्रह्मा जी बोले :

 

त्वं स्वाहा त्वं स्वधा त्वं हि वषटकार: स्वरात्मिका।
सुधा त्वं अक्षरे नित्थे तृधा मात्रात्मिका स्थिता।।’’


तुम ही इस विश्व ब्रह्मांड को धारण करती हो, तुम से इस जगत की सृष्टि होती है, हे जगत जननी! तुम ही सबकी पालनहार हो और सदा तुम ही कलपान्त के समय संहार रूप धारण करने वाली हो।


ऋषि मार्कंडेय द्वारा रचित श्री दुर्गा सप्तशती में मां भगवती दुर्गा जी का महान पुण्य प्रदान करने वाला चरित्र वर्णित है जिसमें प्रथम चरित्र मां महाकाली जी को, मध्यम चरित्र मां महालक्ष्मी जी को तथा उत्तर चरित्र मां महासरस्वती जी को समर्पित है। मां भगवती दुर्गा जी ने शुभ, निशुंभ, महिषासुर, चंडमुंड, रक्तबीज, मधु कैटभ इत्यादि भयंकर असुरों का नाश कर समस्त लोकों को भयमुक्त किया।


युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व राजा लोग मां भगवती दुर्गा जी का आह्वान करते थे। महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व भगवान श्री कृष्ण जी ने युद्ध में विजयश्री प्राप्त करने के मनोरथ से अर्जुन को भगवती दुर्गा का आह्वान कर उन्हें प्रसन्न करने के लिए स्तुति करने को कहा। अर्जुन की स्तुति करने पर मां भगवती दुर्गा प्रकट हुईं और अर्जुन को विजयश्री का आशीर्वाद दिया। भगवान श्री राम ने भी लंका पर चढ़ाई से पूर्व भगवती दुर्गा की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया। तब आदि शक्ति ने स्वयं प्रकट होकर प्रभु श्री राम जी को विजय का आशीर्वाद दिया।


चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को भारतीय वैदिक संस्कृति के अनुसार नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मानवीय जीवन का प्रारंभ पृथ्वी पर हुआ और भगवान सूर्य नारायण की किरणें प्रथम बार पृथ्वी पर पड़ीं। चैत्र शुक्ल नवमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम, सनातन पुरुष साक्षात परब्रह्म भगवान श्री राम का प्रकटोत्सव मनाया जाता है।


नवरात्र वास्तव में हमारे जीवन में आध्यात्मिक एवं मानसिक शक्तियों में वृद्धि करते हैं। इंद्रियों में अनुशासन स्थापित हो, शरीर तंत्र स्वस्थ रहे, हमारे जीवन में सत्वगुण की अभिवृद्धि हो, हम नारी जाति का सम्मान करें, भ्रूण हत्या जैसे कलंक को मिटाकर कन्याओं का पूजन करें तथा इस सृष्टि का सृजन करने वाली सबको जीवन प्रदान करने वाली मां भगवती आदि शक्ति दुर्गा की आराधना कर हम उनकी विशेष कृपा प्राप्त करें।


‘‘या देवी सर्वभूतेषु दया रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।’’


जो सब भूत प्राणियों में दया के रूप में विराजमान हैं, अर्थात अपने भक्तों पर विशेष कृपा कर उन्हें सर्वसुख सौभाग्य आरोग्य मंगल प्रदान करती हैं, उन आदिशक्ति मां भगवती दुर्गा जी को नमस्कार है, बारम्बार नमस्कार है।

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