छठ पूजा के अवसर पर कीजिए कोणार्क मंदिर के दर्शन (Watch Pics)

Edited By ,Updated: 05 Nov, 2016 09:59 AM

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कोणार्क का सूर्य मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी ज़िले के कोणार्क नामक कस्बे में स्थित है। यह भारत का पवित्र स्थल है। यह मंदिर सूर्य देवता के रथ के आकार

कोणार्क का सूर्य मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी ज़िले के कोणार्क नामक कस्बे में स्थित है। यह भारत का पवित्र स्थल है। यह मंदिर सूर्य देवता के रथ के आकार में बनाया गया है। ये मंदिर अपनी अद्भुत नक्काशी के लिए जाना जाता है। सूर्य देव के इस मंदिर के निर्माण में लाल बलुआ एवं ग्रेनाइट पत्थर का प्रयोग किया गया है। 

 

मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। सूर्य मंदिर अपनी विशिष्ट आकार अौर शिल्पकला के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो सिंहों को हाथियों के ऊपर आक्रमण करते हुए दिखाया गया है जिसका एक मतलब यह भी है की ये रक्षा के लिए सदैव तैयार है। 

 

कहा जाता है कि सूर्यदेवता के रथ में बारह जोड़ी पहिए हैं। रथ को खींचने के लिए उसमें सात घोड़े जुते हुए हैं। जिस प्रकार सूर्यदेवता के रथ में पहिए लगे हैं वैसे ही कोणार्क के मंदिर में पत्थर के पहिए अौर घोड़े हैं। इस मंदिर की सूर्य प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ में सुरक्षित रखी गई है। अब यहां कोई देव प्रतिमा नहीं हैं। 

 

पौराणिक कथा के अनुसार श्री कृष्ण के बेटे साम्ब को श्राप के अनुसार कोढ़ का रोग हो गया और इसी जगह पर उन्होने 12 साल सूर्य देवता की तपस्या की और उनको प्रसन्न किया। सभी रोगों का नाश करने वाले सूर्य देवता ने उनको रोग मुक्त किया। साम्ब ने सूर्य देनता के सम्मान में इस मंदिर को निर्माण किया।

 

सूर्य मंदिर समय की गति को भी दर्शाता है, जिसे सूर्यदेवता नियंत्रित करते हैं। पूर्व दिशा की अोंर जुते मंदिर के सात घोड़े सप्ताह के सातों दिनों के प्रतीक हैं।12 जोड़ी पहिए दिन के चौबीस घंटे दर्शाते हैं। वहीं इनमें लगी 8 ताड़ियां दिन के आठों प्रहर की प्रतीक स्वरूप है। माना जाता है कि 12 जोड़ी पहिए साल के बारह महीनों को दर्शाते हैं। 

 

कहा जाता है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों पर सैन्यबल की सफलता का जश्न मनाने को लिए राजा ने कोणार्क में सूर्यमंदिर का निर्माण करवाया था। स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां के टावर में दो शक्तिशाली चुंबक मंदिर के प्रभावशाली आभामंडल के शक्तिपुंज हैं। करीब 112 साल से मंदिर में रेत भरी हुई है। कई आक्रमणों और प्राकृतिक आपदाओं के कारण मंदिर को नुक्सान हो चुका था इसलिए इसे 1903 में बंद कर दिया गया था।

 

पुराने समय में समुद्र तट से गुजरने वाले यूरोपीय नाविक मंदिर के टावर की सहायता से नेविगेशन करते थे। यहां चट्टानों से टकराकर कई जहाज नष्ट होने लगे लगे अौर इसलिए नाविकों ने सूर्य मंदिर को 'ब्लैकपगोड़ा' नाम दे दिया। माना जाता है कि इन दुर्घटनाअों का कारण मंदिर के शक्तिशाली चुंबक है। 

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