लखदाता पीर निगाह: श्रद्धालुओं-पर्यटकों को लुभाता है ये स्थान, कुष्ठ रोगी होते हैं स्वस्थ

Edited By ,Updated: 09 Jan, 2017 01:04 PM

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‘जय लखदाता पीर’ के उद्घोष के साथ श्रद्धालु पीर निगाह पहुंचते हैं। यह पावन स्थल हिमाचल प्रदेश में ऊना के बसौली में स्थित है। यहां ठोस चट्टान में खुदी गुफाएं श्रद्धालुओं को ही नहीं, पर्यटक

‘जय लखदाता पीर’ के उद्घोष के साथ श्रद्धालु पीर निगाह पहुंचते हैं। यह पावन स्थल हिमाचल प्रदेश में ऊना के बसौली में स्थित है। यहां ठोस चट्टान में खुदी गुफाएं श्रद्धालुओं को ही नहीं, पर्यटक जनों को भी लुभाती हैं। श्रद्धालु यहां मन्नतें पूरी होने पर शीश नवाते हैं तो दूसरों के लिए एक संकरी चट्टान और ये गुफाएं कौतूहल का विषय रहती हैं। 


पीर निगाह दो शब्दों का सुमेल है- पीर और निगाह। एक वृत्तांत के अनुसार यहां से 6-7 किलोमीटर दूर एक गांव सैली है। यहां एक ब्राह्मण परिवार बसता था। परिवार के निगाहिया नाम के व्यक्ति को कुष्ठ रोग था। परिवार के लोग उससे घृणा करते थे इसलिए परिवार को छोड़ कर वह कुछ दिन इन गुफाओं में रहा। इसी बीच उसे एक व्यक्ति मिला जिसने उन्हें बताया कि आपका यह रोग लखदाता पीर सखी सुल्तानपुर नामक दरगाह जो अब पाकिस्तान में है, में जाने से ठीक हो सकता है। निगाहिया ने वहां जाने की तैयारी की। उस समय परिवहन के साधन तो थे नहीं। अत: वह पैदल ही चलने लगे। थोड़ी दूरी पर ही उन्हें एक फकीर मिला जिसने उनसे पूछा कि वह कौन है और कहां जा रहा है।


उन्होंने फकीर को अपनी कथा-व्यथा सुनाई तो फकीर ने कहा कि आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है, आप यहीं स्वस्थ हो जाएंगे। फकीर बाबा ने उन्हें साथ लगती छपड़ी (पानी का चश्मा) पर ले जाकर पानी के छींटे मारे और वह ठीक हो गए। फकीर ने कहा कि आज से जो भी इस छपड़ी का पानी कुष्ठ रोगी पर छिड़केगा वह ठीक हो जाएगा।
फकीर ने निगाहिया से कहा कि वह उसी गुफा में भक्ति करें। पीर लखदाता उस फकीर का नाम और निगाहिया उस ब्राह्मण के नाम को जोड़ देने से ‘पीर निगाह’ बना। फकीर ने उनसे कहा कि जो भी श्रद्धालु इस स्थान पर आएगा, उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी और निगाहिया की आंखों से ओझल हो गए। तब से निगाहिया ने यहीं भक्ति की और यहीं समाधिलीन हो गए। इस गुफा में समाधि बनाई गई है। बैसाखी के दिन समाधि को नहलाया जाता है और इस पर पहली चादर सैली गांव के ब्राह्मण परिवार की ही चढ़ाई जाती है। पीर निगाह पसिर में बाण की चारपाई पर सोना, तेल की तलाई करना और छाछ छुलना व गृहस्थ में रहना भी मना है।  बाबा लखदाता की बड़ी गुफा जहां निगाहिया जी ने भक्ति की थी, के साथ लगती सभी गुफाओं का 2 करोड़ रुपए की लागत से जीर्णोद्धार किया गया है।


छपड़ी
पवित्र छपड़ी जिसका जल फकीर द्वारा छिड़कने मात्र से निगाहिया रोगमुक्त हुआ, अब उस छपड़ी का यहां की प्रबंधन समिति ने पूरी तरह से कायाकल्प कर दिया है। यहां फव्वारे लगे हैं। लोगों के नहाने की विशेष व्यवस्था है। यह पवित्र स्थल ऊना-नंगल रोड से सात-आठ किलोमीटर दूर ऊना-बीहडू रोड के मध्य में पूर्व दिशा में है। 


यहां पहुंचने के लिए आवागमन के बेहतर साधन हैं। प्रबंधन समिति का संचालन बसौली की ग्राम पंचायत करती है। यहां श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए प्रबंधन की पांच-छह सराय हैं जबकि एक तीन मंजिला परिसर में ही निर्माणाधीन है। श्रद्धालुओं के लिए लंगर की विशेष व्यवस्था है जो सुबह 11 से दोपहर 3 बजे तक व शाम को 7 से रात 11 बजे तक अटूट चलता है। परिसर में ही औषधालय है। गऊ सेवा सदन है। श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए सुरक्षा गार्ड तैनात हैं। दर्शनों के लिए लाइन में लगे श्रद्धालुओं के लिए कूलर-पंखे हैं। मंदिर परिसर की चौकस निगरानी के लिए सी.सी.टी.वी. हैं। 


मंदिर परिसर से बाहर कुछ दूरी पर एक पुराने भव्य तालाब का जीर्णोद्धार किया गया है। समिति के सामाजिक सरोकार भी है। बसौली गांव में लड़की की शादी तथा बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ अभियान के तहत बेटी होने पर 11 हजार रुपए और 5100 रुपए परिजनों को दिए जाते हैं। पीर निगाह प्रबंधन समिति बहुत से अन्य सामाजिक एवं धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़ी है। पीर निगाह में श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाए गए चढ़ावे का निहायत ही अच्छे तरीके से सदुपयोग हो रहा है।

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