श्रीराम के वचनों का पालन करने हेतु लक्ष्मण ने किया था ये त्याग

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Nov, 2017 03:59 PM

lakshman did this to abstain from the words of shriram

रामायण में एेसी कईं घटनाओं का वर्णन है जो इंसान को चकित करने वाली है। रामायण महाकाव्य से ये तो सब को पता चलता है कि श्री राम और उनके भाईयों में बहुत ही प्रेम था।

रामायण में एेसी कईं घटनाओं का वर्णन है जो इंसान को चकित करने वाली है। रामायण महाकाव्य से ये तो सब को पता चलता है कि श्री राम और उनके भाईयों में बहुत ही प्रेम था। श्रीराम की खातिर उनके एक भाई ने 14 वर्ष तक अपनी का त्याग कर उनके साथ वनवास काटा तो एक ने वर्षों तक अपनी ही मां से मुहं मौड़े रखा और राजपाट या राज सिघांसन को अस्वीकार कर दिया। इन्हीं भाईयों में से लक्ष्मण जी के बारे में रामायण में एक एेसी घटना का वर्णन जहां श्री राम को स्वंय अपने अनुज लक्ष्मण को न चाहते हुए भी मृत्युदंड देना पड़ा। 

 

आगे जाने कि आखिर क्या कारण था जो भगवान राम ने भ्राता लक्ष्मण को दिया मृत्युदंड-


ये घटना उस वक्त की है जब श्री राम लंका विजय करके अयोध्या लौट आए और अयोध्या के राजा बन गए थे। एक दिन यम देवता कोई महत्तवपूर्ण चर्चा करने श्री राम के पास आए। चर्चा प्रारंभ करने से पूर्व उन्होंने भगवान राम से कहा कि आप जो भी प्रतिज्ञा करते हो उसे पूर्ण करते हैं। तो मैं भी आपसे एक आज वचन मांगता हूं कि जब तक मेरे और आपके बीच वार्तालाप चले तो हमारे बीच कोई नहीं आएगा और जो आएगा, उसको आपको मृत्युदंड देना पड़ेगा। भगवान राम ने यम को वचन दे दिया। 

 


श्री राम लक्ष्मण जी को यह कहते हुए द्वारपाल नियुक्त कर दिया कि जब तक उनकी और यम की बात हो तब तक वो किसी को भी अंदर न आने दें, अन्यथा उसे उन्हें मृत्युदंड देना पड़ेगा। लक्ष्मण भाई की आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर खड़े हो गए।

 


लक्ष्मण जी को द्वारपाल बने अभी कुछ ही समय बीता कि वहां पर ऋषि दुर्वासा का आगमन हुआ। दुर्वासा ऋषि ने लक्ष्मण को अपने आगमन के बारे में श्री राम को जानकारी देने के लिए कहा तो लक्ष्मण जी ने विनम्रता के साथ मना कर दिया। इस पर दुर्वासा क्रोधित हो गए तथा उन्होंने सम्पूर्ण अयोध्या को श्राप देने की बात कहने लगे।

 


लक्ष्मण समझ गए कि ये एक कठिन स्थिति है जिसमें या तो उन्हें रामाज्ञा का उल्लंघन करना होगा या फिर सम्पूर्ण नगर को ऋषि के श्राप की अग्नि में झोंकना होगा। लक्ष्मण ने शीघ्र ही यह निश्चय कर लिया कि उनको स्वयं का बलिदान देना होगा ताकि वो नगर वासियों को ऋषि के श्राप से बचा सकें। उन्होंने भीतर जाकर ऋषि दुर्वासा के आगमन की सूचना दी।

 

श्रीराम ने शीघ्रता से यम के साथ अपनी वार्तालाप समाप्त कर ऋषि दुर्वासा की आवभगत की। परंतु अब श्री राम दुविधा में पड़ गए क्योंकि उन्हें अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्यु दंड देना था। वो समझ नहीं पा रहे थे की वो अपने भाई को मृत्युदंड कैसे दें, लेकिन उन्होंने यम को वचन दिया था जिसे निभाना उनका फर्ज था।

 


इस दुविधा की स्तिथि में श्री राम ने अपने गुरु का स्मरण किया और कोई रास्ता दिखाने को कहा। गुरदेव ने कहा की अपने किसी प्रिय का त्याग उसकी मृत्यु के समान ही है। अतः तुम अपने वचन का पालन करने के लिए लक्ष्मण का त्याग कर दो।

 

लेकिन जैसे ही लक्ष्मण ने यह सुना तो उन्होंने राम से कहा की आप भूल कर भी मेरा त्याग नहीं करना आप से दूर रहने से तो यह अच्छा है कि मैं आपके वचन की पालना करते हुए मृत्यु को गले लगा लूं। ऐसा कहकर लक्ष्मण ने जल समाधि ले ली।

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!