दिल की बीमारियों से हैं परेशान, जानें कौन से ग्रह कर रहे हैं आप पर प्रहार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Nov, 2017 12:24 PM

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चंडीगढ़ के एक प्रसिद्ध हार्ट केयर अस्पताल के कार्डियो विभाग में मरीजों की कुंडलियों का विश्लेषण और उनसे बातचीत करने पर पाया कि यदि हार्ट अटैक का कांबीनेशन आपकी कुंडली में है तो आपको अच्छे से अच्छा सर्जन या हृदय रोग विशेषज्ञ भी इस रोग से नहीं बचा...

चंडीगढ़ के एक प्रसिद्ध हार्ट केयर अस्पताल के कार्डियो विभाग में मरीजों की कुंडलियों का विश्लेषण और उनसे बातचीत करने पर पाया कि यदि हार्ट अटैक का कांबीनेशन आपकी कुंडली में है तो आपको अच्छे से अच्छा सर्जन या हृदय रोग विशेषज्ञ भी इस रोग से नहीं बचा सकता। इस अस्पताल में एक हार्ट स्पैशलिस्ट डाक्टर, एक किसान, एक फौजी, एक महिला, एक 12 साल का बच्चा जब बाईपास सर्जरी करवाते दिखे तो उन्होंने उन सभी तथ्यों की पुष्टि की जिनसे हार्ट प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए और फिर भी अच्छी सेहत, उचित रखरखाव और नियमित व्यायाम, योगासनों आदि के बावजूद हो गई।


यूं तो ज्योतिष शास्त्र की मैडीकल शाखा, बहुत विशाल तथा चिकित्सा विज्ञान की तरह ही कॉम्पलीकेटिड है लेकिन फिर भी हम एक आम पाठक की सुविधा के लिए कुछ योग बता रहे हैं जो वे स्वयं अपनी कुंडली में देख सकते हैं या सुयोग्य ज्योतिषी को दिखा सकते हैं जिसे इस शाखा में पूर्ण अनुभव हो। 


कुंडली के प्रथम भाव शरीर, चौथा व पांचवां छाती व हृदय का, छठा भाव रोग, ऋण व रिपु का माना गया है। बारहवां भाव अस्पताल और व्यय का होता है। आठवां मृत्यु स्थान कहलाता है। यदि इन तीनों भावों को दशाएं एक साथ आ जाएं या गोचर में परस्पर संबंध बन जाएं तो समझें कि आपातकाल लागू होने वाला है या मृत्युतुल्य स्थिति बनने वाली है या कोर्ट-कचहरी, थाने व अस्पतालों की परिक्रमा के दिन आ गए हैं।


यदि लग्न में शुभ ग्रह है और लग्नेश बलवान है तो इस रोग की संभावना कम रहती है और पहले भाव में क्रूर ग्रह या मारकेश की दृष्टि या युति हो तो हृदय रोग की संभावना प्रबल रहती है। पहले भाव में ही सूर्य, मंगल, राहू, शनि ग्रहों की युति हो या दृष्टि हो या छठे भाव का स्वामी स्वयं लग्न में हो तो भी हार्ट संबंधी समस्याओं से बचना कठिन रहता है।


दिल के रोग का कारक ग्रह सूर्य है तो मंगल रक्त संचार को नियंत्रित करता है। शनि रोगों का द्योतक है।


षष्ठेष यदि किसी अन्य भाव से परिवर्तन योग बनाता है तो उस अंक की हानि करता है।


यदि सिंह, कन्या और वृश्चिक लग्न हो तो भी हृदय संबंधी रोग की आशंका रहती है।


सूर्य नीच राशि का या मंगल के साथ हो और प्रथम, चतुर्थ या 10वें  भाव में विद्यमान हों। सूर्य-गुरु व शनि, मंगल, सूर्य शुक्र 4 में या राहू-केतु की दृष्टि हो तो भी हृदयाघात से जीवन डांवाडोल हो जाता है।


शनि-बुध की युति या इनकी दशा, दिल की नसें कमजोर करते हैं।


मेष लग्न में शनि, कर्क का षष्ठेश बुध और सूर्य पाप मध्य हो तो भी हृदय रोग होता है।


ऐसे बहुत से योग हर लग्न के लिए अलग-अलग हैं परंतु मुख्यत: दिल की बीमारी सूर्य-शनि और दिल का दौरा शनि-मंगल देते हैं।

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