भौतिक चीजों को छोड़ जाएं इनकी शरण, जन्म-मृत्यु से मिलेगी मुक्ति

Edited By ,Updated: 24 Feb, 2017 11:55 AM

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परमेश्वर के रूप में श्रीकृष्ण यहां कभी भी प्रकट हो सकते हैं और हम आपत्ति उठाकर यह नहीं कह सकते कि वे क्यों आए? वे परम स्वतंत्र हैं और इच्छानुसार जब चाहें

परमेश्वर के रूप में श्रीकृष्ण यहां कभी भी प्रकट हो सकते हैं और हम आपत्ति उठाकर यह नहीं कह सकते कि वे क्यों आए? वे परम स्वतंत्र हैं और इच्छानुसार जब चाहें तब आ सकते हैं और अन्तर्धान हो सकते हैं। यदि राज्याध्यक्ष बन्दीगृह देखने जाता है तो हम यह नहीं कह सकते कि वह बाध्य होकर आया होगा। श्रीकृष्ण सोद्देश्य आते हैं, पतित एवं बाद्धजीवों का उद्धार करने के उद्धेश्य से। श्रीकृष्ण को हम नहीं, अपितु श्रीकृष्ण हमें प्यार करते हैं। वे प्रत्येक प्राणी को अपना पुत्र मानते हैं। 

 

सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः। 
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता॥ (श्रीगीता-14/4) 

 

अर्थात: हे कुन्तिपुत्र! सब प्रकार की योनियों में जितने भी शरीर उत्पन्न होते हैं, उन सबका उत्पत्ति स्थान तो यह प्रकृति है और मैं बीजदाता पिता हूं। 

 

पिता पुत्र के प्रति सदैव वत्सल होता है। पुत्र भले ही पिता को भूल जाए, किंतु पिता अपने पुत्र को कभी नहीं भूल सकता। हमें जन्म तथा मृत्यु के क्लेशों से उबारने के लिए श्रीकृष्ण इस भौतिक ब्रह्माण्ड में प्रेमवश अवतरित होते हैं। वे कहते हैं, "मेरे पुत्रो! तुम इस दुखःपूर्ण संसार में क्यों सड़ रहे हो? मेरे पास आओ। मैं सब प्रकार से तुम्हारी रक्षा करूंगा।" हम भगवान के पुत्र हैं और क्लेश तथा संदेह के बिना, ठाठ से जीवन का उपभोग कर सकते हैं। अतः हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारी तरह श्रीकृष्ण भी प्रकृति के नियमों के वशीभूत होकर आते हैं। 

 

संस्कृत शब्द अवतार का शाब्दिक अर्थ है 'जो उतरता है'। जो स्वेच्छा से आध्यात्मिक ब्रह्माण्ड से इस भौतिक ब्रह्माण्ड में उतरता है वह अवतार कहलाता है। कभी श्रीकृष्ण स्वयं अवतरित होते हैं और कभी वे अपने प्रतिनिधि भेजते हैं। संसार के प्रमुख धर्म हिन्दु, बौद्ध, क्रिस्तानी तथा मुस्लिम किसी न किसी परम सत्ता या पुरुष को ईश्वर के धाम से अवतार लेते मानते हैं। क्रिस्तानी धर्म के जीसस क्राइस्ट को ईश्वर का पुत्र
माना जाता है जो बद्धजीवों के उद्धार हेतु ईश्वर के धाम से आते हैं। 

 

श्रीभगवद् गीता के अनुयायी होने के कारण हम इस दावे को सत्य मानते हैं। अतः मूलरूप से कोई मत-मतान्तर नहीं है। विस्तार में जाने पर संस्कृति, जलवायु और निवासियों में अंतर के कारण कुछ अंतर भले ही पाया जाए किंतु मूल सिद्धांत जैसे का तैसा रह जाता है कि ईश्वर या उससे प्रतिनिधि बद्धजीवों को उबारने के लिए आते रहते हैं। 

श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com

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