उधार के ज्ञान से किसी का भी जीवन आलौकित नहीं हो सकता

Edited By ,Updated: 09 May, 2017 02:24 PM

life of anyone with the knowledge of borrowing can not be fulfilled

हमारी चेतना पर जब विचारों का बहुत बोझ होता है, मन में ऊहापोह होती है तो समझें कि चेतना कैद हो गई हैै। यह एक ऐसी कैद है जिसके जेलर हम स्वयं ही हैं। ऐसे में छटपटाहट की स्थिति निर्मित होती है।

हमारी चेतना पर जब विचारों का बहुत बोझ होता है, मन में ऊहापोह होती है तो समझें कि चेतना कैद हो गई हैै। यह एक ऐसी कैद है जिसके जेलर हम स्वयं ही हैं। ऐसे में छटपटाहट की स्थिति निर्मित होती है। इस कैद से परे जाने पर ही आनंद मिल सकता है। जीवन जीने के दो ढंग हैं- एक ढंग है चिंतन का, विचार का और दूसरा है अनुभूति का। अधिकतर लोगों पर मन का दबाव होता है। वे सोच-विचार में उलझ जाते हैं। वे सोचते ज्यादा, जीते कम हैं क्योंकि वे सोचने को ही जीवन समझ लेते हैं। वे धर्मग्रंथ और दर्शन पढ़ते हैं और समझते हैं कि उन्हें सारा ज्ञान उपलब्ध हो जाएगा। इसी भ्रांति के कारण वे दूसरों के साथ ज्ञान बांटने लगते हैं।उन्हें यह ध्यान ही नहीं रहता कि यह सब ज्ञान उधार का है, बासी है। इस ज्ञान से उनका अपना कोई रूपांतरण नहीं हुआ है। उधार के ज्ञान से किसी का भी जीवन आलौकित नहीं हो सकता है, बल्कि यह डर रहता है कि कहीं अहंकार न घेर ले। 


ऐसे में व्यक्ति जो कुछ भी करता है, वह मन के दायरे में ही होता है। उससे मन के कैदखाने की दीवारें टूटती नहीं, बल्कि और मजबूत होती जाती हैं। इनसे उसे न कोई समाधान मिलता है और न कोई मुक्ति, बल्कि निराशा-हताशा, अतृप्ति और अवसाद बढ़ता जाता है। अनुभवी व्यक्तियों का निष्कर्ष है कि ध्यान ही वह कुंजी है जिससे यह ताला खुलता है और समाधि ही समाधान है। अपने मन के पार सोचने या जाने का प्रयास ही सारी चीजों से मुक्त करता है। जब आप भय, क्रोध, वासना या किसी प्रकार की उत्तेजना में होते हैं, उस समय गौर करें कि आपकी श्वास भी तेज गति से चलने लगती है और विचारों का आंदोलन शुरू हो जाता है। आप आपा खो बैठते हैं।


आत्मा सिकुड़ जाती है और विक्षिप्तता आपको पकड़ लेती है। आप बुरी तरह विचारों के जाल में जकड़े जाते हैं। श्वास का अस्त-व्यस्त होना आपके भीतर विचारों का महाभारत खड़ा कर देता है। इसलिए जापानी जेन साधक अपने विचारों के साथ संघर्ष नहीं करते और न ही उन्हें नियंत्रित करते हैं। वे अपनी श्वास की ओर उन्मुख होते हैं और उसे साधते हैं। निश्चित ही यह अनुभूति का आयाम है।


आप अपने विचारों से उलझते नहीं, उनके पार चले जाते हैं। यह घड़ी है आत्मज्ञान की, जहां सब उधार ज्ञान और मन का पूरा जाल पीछे छूट जाता है। इसे ही साक्षीभाव कहते हैं, जिसको पाना ही आनंद है। इस अवस्था में सब द्वंद्व मिट जाते हैं।

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!