वर्ष में एक बार खुलता है 'लिंगाई माता मंदिर', स्त्री लिंग में होती है शिवलिंग की पूजा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Mar, 2018 09:07 AM

lingai mata temple at alor villlage

भारत देश के कोने-कोने में प्राचीन मंदिर स्थापित हैं। इन मंदिरों की प्रसिद्धि का कारण इनसे जुड़ा इतिहास है। इनमें से ज्यादातार के बारे में तो अधिकतर लोग जानते होंगे। लेकिन अभी भी देश में एेसे कई मंदिर हैं जिनके बारे में बहुत से लोग नहीं जानते। तो आईए...

भारत देश के कोने-कोने में प्राचीन मंदिर स्थापित हैं। इन मंदिरों की प्रसिद्धि का कारण इनसे जुड़ा इतिहास है। इनमें से ज्यादातार के बारे में तो अधिकतर लोग जानते होंगे। लेकिन अभी भी देश में एेसे कई मंदिर हैं जिनके बारे में बहुत से लोग नहीं जानते। तो आईए आज हम आपको भोलेनाथ के एेसे मंदिर के बारे में बताते हैं, जहां शिवलिंग की पूजा स्त्री रूप में की जाती है। अधिकतर इतिहासिक व रहस्यमयी मंदिर झारखंड और छत्तीसगढ़ के दुर्गम इलाकों में ही स्थित है तथा साथ ही यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित भी है। इसलिए यहां किसी भी मंदिर में दर्शन करने के लिए स्थानीय लोग ही पहुंच पाते हैं। एेसे ही मंदिरों में एक मंदिर लिंगाई माता मंदिर है जो आलोर गांव की गुफा में स्थित है। इस मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित है, जिसकी स्त्री लिंग में पूजा की जाती है। यही कराण है इस मंदिर को लिंगाई माता मंदिर से नाम से जाना जाता है। 

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आलोर गांव में स्तिथ है मंदिर
फरसगांव से लगभग 8 किमी दूर पश्चिम से बड़ेडोंगर मार्ग पर ग्राम आलोर स्थित है। ग्राम से लगभग 2 किमी दूर उत्तर पश्चिम में एक पहाड़ी है जिसे लिंगई गट्टा लिंगई माता के नाम से जाना जाता है। इस छोटी से पहाड़ी के ऊपर विस्तृत फैला हुई चट्टान के ऊपर एक विशाल पत्थर है। बाहर से अन्य पत्थर की तरह सामान्य दिखने वाला यह पत्थर स्तूप-नुमा है। इस पत्थर की संरचना को भीतर से देखने पर ऐसा लगता है कि मानो कोई विशाल पत्थर को कटोरानुमा तराश कर चट्टान के ऊपर उलट दिया गया है। इस मंदिर के दक्षिण दिशा में एक सुरंग है जो इस गुफा का प्रवेश द्वार है। द्वार इनता छोटा है कि बैठकर या लेटकर ही यहां प्रवेश किया जा सकता है। गुफा के अंदर 25 से 30 आदमी बैठ सकते हैं। गुफा के अंदर चट्टान  के बीचों-बीच निकला शिवलिंग है, जिसकी ऊंचाई लगभग दो फुट होगी। श्रद्धालुओं का मानना है कि इसकी ऊंचाई पहले बहुत कम थी समय के साथ यह बढ़ गई।

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वर्ष में एक दिन खुलता है मंदिर
परंपरा और लोकमान्यता के कारण इस प्राकृतिक मंदिर में प्रति दिन पूजा अर्चना नहीं होती है। वर्ष में एक दिन मंदिर का द्वार खुलता है और इसी दिन यहां मेला भरता है।  संतान प्राप्ति की मन्नत लिए यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष नवमीं तिथि के पश्चात आने वाले बुधवार को इस प्राकृतिक देवालय को खोल दिया जाता है तथा दिनभर श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना एवं दर्शन की जाती है। 

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पहली मान्यता
इस मंदिर से जुड़ी दो विशेष मान्यताएं है। पहली मान्यता संतान प्राप्ति को लेकर है। इस मंदिर में आने वाले अधिकांश श्रद्धालु संतान प्राप्ति की मन्नत मांगने आते है। यहां मनौती मांगने का तरीका भी निराला है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति को खीरा चढ़ाना आवश्यक है प्रसाद के रूप में चढ़े खीरे को पुजारी, पूजा पश्चात दंपति को वापस करता है। दंपति को शिवलिंग के सामने ही इस ककड़ी को अपने नाखून से चीरा लगाकर दो टुकड़ों में तोड़ना होता है और फिर सामने ही इस प्रसाद को दोनों को ग्रहण करना होता है। मन्नत पूरी होने पर अगले साल श्रद्धा अनुसार चढ़ावा चढ़ाना होता है। माता को पशुबलि और शराब चढ़ाना वर्जित है।

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दूसरी मान्यता
दूसरी मान्यता भविष्य के अनुमान को लेकर है। एक दिन की पूजा के बाद मंदिर बंद कर दिया जाता है। इसके अगले साल इस रेत पर जो चन्ह मिलते हैं, उससे पुजारी अगले साल के भविष्य का अनुमान लगाते हैं। यदि कमल का निशान हो तो धन संपदा में बढ़ौत्तरी, हाथी के पांव के निशान हो तो उन्नति, घोड़े के खुर के निशान हों तो युद्घ, बाघ के पैर के निशान हो तो आतंक, बिल्ली के पैर के निशान हो तो भय तथा मुर्गियों के पैर के निशान होने पर अकाल होने का संकेत माना जाता है।

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