Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Aug, 2017 08:43 AM
पौराणिक कथानुसार समुद्र मंथन के समय जब कालकूट विष निकला तो उससे तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई। भगवान भोले भंडारी ने सभी देवताओं के
पौराणिक कथानुसार समुद्र मंथन के समय जब कालकूट विष निकला तो उससे तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई। भगवान भोले भंडारी ने सभी देवताओं के आग्रह पर यह विषपान करके उसे अपने कंठ में रोके रखा। इससे उनका कंठ नीला हो गया। तभी वह नीलकंठ कहलाए।
इस कालकूट विष ने भोले बाबा को बेचैन कर दिया। वह उसकी गर्मी से व्याकुल होने लगे। उस व्याकुलता को देखकर सभी देवी-देवताओं ने उन पर जलधारा प्रवाहित करनी शुरू कर दी, उस समय सावन का मास था। जल धारा से जब शिव शांत नहीं हुए तो उन्होंने शीतलता के स्वामी चंद्र देव को अपने शीश पर धारण कर लिया। इससे उन्हें काफी राहत मिली और भगवान शिव ने चंद्र की गरिमा बढ़ाने के लिए आशीर्वाद दिया कि जो भी मनुष्य सावन के सोमवार को मुझ पर जल चढ़ाएगा और सच्चे मन से जो भी मांगेगा उसकी हर इच्छा पूरी होगी और उसे विविध तापों (दैहिक, दैविक और भौतिक) से मुक्ति मिलेगी।
इस मास भगवान शंकर को दूध, जल, पंचगव्य (दही, दूध, घी, मक्खन, गंगाजल) बिल्वपत्र, आक, धतूरा आदि चढ़ाना चाहिए।
ज्योतिष मतानुसार इस मास में कालसर्प दोष निवारण के लिए शिव मंदिर में रुद्राभिषेक के साथ-साथ काल सर्प पूजन से दोष दूर हो जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्री अमरनाथ यात्रा का पौराणिक महत्व भी गुरु पूर्णिमा से लेकर रक्षा बंधन तक है।