आत्मा के स्वरूप को प्रकाशित करने वाले परमात्मा शिव को जानें

Edited By ,Updated: 17 Feb, 2017 12:25 PM

lord shiva who appeared to know the nature of the soul

वेदांतों में शैव तत्व ज्ञान के बीज का दर्शन होता है। इस तत्व ज्ञान के अनुसार सृष्टि आनंद से परिपूर्ण है। आनंद से ही सृष्टि का आरंभ,

वेदांतों में शैव तत्व ज्ञान के बीज का दर्शन होता है। इस तत्व ज्ञान के अनुसार सृष्टि आनंद से परिपूर्ण है। आनंद से ही सृष्टि का आरंभ, उसी से स्थिति और उसी से समाहार भी है। शिव के तांडव नृत्य में उसी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय की भी अभिव्यक्ति हुई है। उपनिषद् में कहा गया है- 
आनन्दो ब्रह्मति व्यजानात।
आनन्दो द्वयेव खल्वि मा नि भूतानि जायन्ते।
आनन्देन जातानि जीवन्ति।
आनंद प्रयान्त्य मिस विशन्तीति। 


मानव जैसे-जैसे इस शिव तत्व की प्राप्ति करता है, उसका दुख दूर होता जाता है और उसे स्थायी मंगल तथा आनंद के दर्शन होने लगते हैं। शिव महापुराण में शिव के कल्याणकारी स्वरूप को प्रकट करने वाली अनेक अंतर्कथाओं का वर्णन है। यथा, मूढ़ नामक मायावी राक्षस को भस्म कर बाल विधवा ब्राह्मण पत्नी के शील की रक्षा करना, श्री राम को लंका विजय का आशीर्वाद देना तथा शंख चूड़, गजासुर, दुन्दुभि निहदि जैसे दुष्टों का दमन कर जगत का कल्याण करना आदि। सृष्टि के कल्याण में शिव की क्रियाशीलता को जानकर महापुराणकार ने गुणानुवाद करते हुए लिखा:-
आद्यन्त मंगलम जात समान भाव
मार्य तमीशम जरा मरमात्य देवम्।
पंचाननं प्रबल पंच विनोदशीलं
संभावये मनसि शंकर माम्बिकेशं।।


अर्थात् जो आदि से अंत तक नित्य मंगलमय है, जिनकी समानता कहीं भी नहीं है, जो आत्मा के स्वरूप को प्रकाशित करने वाले परमात्मा हैं और जो खेल ही खेल में अनायास जगत की रचना, पालन, संहार, अनुग्रह एवं तिरोभाव रूप पांच प्रबल कर्म करते रहते हैं, उन सर्वश्रेष्ठ अजर-अमर ईश्वर, अम्बिका पति भगवान शंकर का मैं मन ही मन चिंतन करता हूं।


आज का मनुष्य चिर आनंद की तुलना में तात्कालिक आनंद की ओर अग्रसर है, जो कि शुद्ध बुद्धि निर्मित है, जिन्हें सामान्य अर्थ में वस्तुवादी, पदार्थवादी या बुद्धिवादी कहा जाता है। उनका सारा आधार विकृत बुद्धिवाद को लेकर है, जिनसे चेतना और संवेदना के टुकड़े-टुकड़े कर दिए हैं, इसीलिए जगत के दुख की समस्या हल नहीं हो पाती। प्रत्येक वर्ग भ्रमित होता है, जिससे मानवता नष्ट होती है। इसका समाधान शिव-तत्व में है। शिवम् संदेश देता है कि मानव अपनी सब भूलें ठीक कर लें। यह जो महाविषमता का विष फैला है, वह अपनी कर्म की उन्नति से सम हो जाए, सब युक्ति बने, सबके भ्रम कट जाएं, शुभ मंगल ही उनका रहस्य हो।


भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक जगत के द्योतक त्रिगुणों को पुराणों में त्रिपुर का रूप दिया गया है, जिससे सृष्टि पीड़ित है। शिव इसी त्रिपुर का वध करके सृष्टि की रक्षा करते हैं। स्पष्ट है कि त्रिगुण, त्रिपुर या त्रैत की यह भेद बुद्धि ही संसार के दुख का कारण है और इन तीनों का सामंजस्य या तीनों का समत्व ही आनंद का साधन है। भगवान शिव मात्र पौराणिक देवता ही नहीं, वह पंचदेवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर हैं एवं निगमागम आदि सभी शास्त्रों में महिमामंडित महादेव हैं। वेदों ने इस परम तत्व को अव्यक्त, अजन्मा, सबका कारण, पालक एवं संहारक कहकर उनका गुणगान किया है।


श्रुतियों ने सदाशिव को स्वयंभू, शांत, प्रपंचातीत, परात्पर, परम तत्व कहकर स्तुति की है। समुद्र मंथन से निकले कालकूट का पान कर जगत का कल्याण करने वाले शिव स्वयं कल्याण स्वरूप हैं। इस कल्याणकारी रूप की उपासना उच्च कोटि के सिद्धों, आत्मकल्याणकारी साधकों एवं सर्व साधारण आस्तिक जनों, सभी के लिए परम मंगलमय, परम कल्याणकारी, सर्व सिद्धिदायक और सर्व श्रेयस्कर है।

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