महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती आज: भारत को ले गए थे नए उजालों की ओर

Edited By ,Updated: 21 Feb, 2017 09:35 AM

maharishi swami dayanand saraswati jayanti today

उजालों के राही दयानंद भारत भर को उजाला दिखाकर न जाने कहां चले गए। आज समस्त भारत क्रन्दन कर रहा है कि जिस राह से आपने भारत को उजाले दिखाए, आज पुन: उन्हीं उजालों की ओर

उजालों के राही दयानंद भारत भर को उजाला दिखाकर न जाने कहां चले गए। आज समस्त भारत क्रन्दन कर रहा है कि जिस राह से आपने भारत को उजाले दिखाए, आज पुन: उन्हीं उजालों की ओर भारत को ले जाने की आवश्यकता है। अत: आप पुन: लौट आइए अथवा हमें सही रास्ता दिखाइए। आज ऋषि बोधोत्सव पर अवलोकन करें कि महर्षि दयानंद जी ने जब भारत के पटल पर पदार्पण किया, तब उनके समक्ष कौन-सी चुनौतियां थीं। कुछ धर्माचार्यों द्वारा दलितों का तिरस्कार, छुआछूत का बड़े पैमाने पर प्रचलन, वैदिक परम्पराओं तथा संस्कृति का ह्रास, पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से भारतीयों में अपने वैदिक धर्म तथा मान्यताओं के प्रति हीन भावना, ईसाई व मुस्लिम धर्म के प्रभाव से गौवध व गौमांस का सेवन तथा अज्ञानता का साम्राज्य, नारी जाति की दुर्दशा, सती प्रथा, बाल विवाह, विधवाओं का अपमान व तिरस्कार, अज्ञानी व स्वार्थी धर्माचार्यों द्वारा अपने आपको ईश्वर का अवतार घोषित करना उस समय की बड़ी चुनौतियां थीं।


इन्हें दूर करने और दलितों तथा समाज को जागरूक करने के स्वामी जी ने अथक प्रयास किए। शास्त्रार्थ के द्वारा विधर्मियों को तर्कपूर्ण ढंग से पराजित किया तथा उनके द्वारा रचित पाखंड का खंडन, समाज के सभी वर्गों के लिए वेद पढऩे-पढ़ाने व सुनने-सुनाने की अनिवार्यता तथा वैदिक धर्म व जाति आदि को पुन: गौरवमयी स्थान दिलाने एवं इस कार्य के लिए अथक प्रयास किए। उन्होंने जातिगत रूढिय़ों का खंडन तथा वैदिक धर्म का मंडन किया। वेदों के प्रचार व प्रसार के लिए आर्य समाज की स्थापना तथा कथित धर्माचार्यों का पर्दाफाश एवं वैदिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। हालांकि इस कार्य से स्वामी जी के अनेक शत्रु पैदा हो गए और उनके प्राण हरने के भी अनेक षड्यंत्र रचे गए लेकिन ‘दयानंद ने अपने सत्य व वैदिक मार्ग पर चलना नहीं छोड़ा।’ 


इस कठिन मार्ग से हटाने के लिए जोधपुर नरेश ने आपको उरवी मठ का महंत बनाने का भी प्रलोभन दिया लेकिन गुरु दक्षिणा में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का जो वचन गुरु विरजानंद को इन्होंने दिया था, उसे जीवन पर्यन्त निभाया। संसार को सत्य व वैदिक मार्ग पर चलाने के लिए आपने अपने अमर ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की रचना करके एक अमूल्य ज्योतिपुंज प्रदान किया, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना उस समय था। 


स्वामी जी के अनुयायियों ने शिक्षा के प्रसार में बहुत योगदान दिया  है। यदि हम डी.ए.वी. (दयानंद एंग्लो वैदिक) संस्थाओं को ही लें तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि डी.ए.वी. संस्थाएं संसार भर में शिक्षण क्षेत्र में सबसे बड़ी शृंखला है, जिसमें लाखों बच्चे एक ईश्वरवाद एवं देशभक्ति का पाठ पढ़ रहे हैं। इसके अतिरिक्त भारत भर में विभिन्न आर्य समाजों द्वारा अनेक विद्यालय एवं महाविद्यालय चलाए जा रहे हैं। इनमें भी लाखों विद्यार्थी देशभक्ति तथा चरित्र निर्माण का पाठ पढ़ रहे हैं। 


अब सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या हमें इतनी प्रगति पर संतुष्ट हो जाना चाहिए या नहीं। यदि उत्तर नहीं में है तो हमें विचारना चाहिए कि क्या हम इतने पर ही संतुष्ट हो जाएं अथवा ऋषि जी निर्देशित अन्य कार्यों पर भी अग्रसर हों। महर्षि जी द्वारा प्रारम्भ किया गया शुद्धि कार्यक्रम तो शायद आज विचारों तक ही सीमित रह गया है। गत दो वर्षों से केन्द्र सरकार द्वारा चलाया गया ‘घर वापसी’ कार्यक्रम भी लुप्तप्राय दिख रहा है। इस क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन परिवारों को हम हिन्दुत्व के दायरे में ला रहे हैं, उनके बच्चों की शिक्षा, विवाह तथा सबकी सुरक्षा के प्रबंध करने की भी आवश्यकता है अन्यथा यह प्रयास विफल रहेंगे। 


उनके बोधोत्सव पर सभी केन्द्रीय तथा प्रादेशिक सभाओं व ऋषि के अनुयायियों को प्रण लेना होगा कि हम उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने का दृढ़ निश्चय करें। 

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