Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Jan, 2018 11:52 AM
भगवान शिव के विश्वभर में बहुत से मंदिर है। इन में से बहुत से मंदिरों में भगवान शंकर शिवलिंग के रूप में विराजित है। एेसा ही एक मंदिर छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में है। यह मंदिर राजनांदगांव जिले में घनघोर जंगलों के बीचो बीच स्थित है
भगवान शिव के विश्वभर में बहुत से मंदिर है। इन में से बहुत से मंदिरों में भगवान शंकर शिवलिंग के रूप में विराजित है। एेसा ही एक मंदिर छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में है। यह मंदिर राजनांदगांव जिले में घनघोर जंगलों के बीचो बीच स्थित है, जहां एक गुफा में शिवलिंग स्थापित है। यह गुफा मंढीप बाबा के नाम जानी जाती है। इस स्थान पर इस शिवलिंग को किसने कब स्थापित किया इसका रहस्य किसी को नहीं पता। यानी शिवलिंग का निर्माण प्राकृतिक रूप से हुआ है। स्थानीय लोंगो के अनुसार यहां बाबा स्वयं प्रकट हुए हैं।
राजनांदगांव-कवर्धा मुख्य मार्ग पर स्थित गंडई से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर मंढीप बाबा की गुफा स्थित है। लेकिन भोलेनाथ के भक्तों को यहां बाबा के दर्शन करने का मौका साल में एक ही दिन अक्षय तृतीया के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार को मिलता है। यहां कि सबसे अनोखी और दिलचस्प बात ये है कि यहां जाने के लिए एक ही नदी को 16 बार पार करना पड़ता है। यह कोई अंधविश्वास नहीं है, बल्कि यहां जाने का रास्ता ही इतना घुमावदार है कि वह नदी रास्ते में 16 बार आती है।
साल में एक ही बार जाने के पीछे पुरानी परंपरा के अलावा कुछ व्यवहारिक कठिनाइयां भी हैं। बरसात में गुफा में पानी भर जाता है, जबकि ठंड के मौसम में खेती-किसानी में लोग वहां नहीं जाते। रास्ता भी इतना दुर्गम है कि सात-आठ किलोमीटर का सफर तय करने में घंटो लग जाते हैं। उसके बाद पैदल चलते समय पहले पहाड़ी पर चढ़ना पड़ता है और फिर उतरना, तब जाकर गुफा का दरवाजा मिलता है। यह घोर नक्सल इलाके में पड़ता है, इसलिए भी आम दिनों में लोग इधर नहीं आते।
हर साल अक्षय तृतीया के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार के दिन गुफा के पास इलाके के हजारों लोग इकठ्ठा होते हैं। परंपरानुसार सबसे पहले ठाकुर टोला राजवंश के लोग पूजा करने के बाद गुफा में प्रवेश करते हैं। उसके बाद आम दर्शनार्थियों को प्रवेश करने का मौका मिलता है। गुफा के डेढ़-दो फीट के रास्ते में घुप अंधेरा रहता है। लोग काफी कठिनाई से रौशनी की व्यवस्था साथ लेकर बाबा के दर्शन के लिए अंदर पहुंचते हैं। गुफा में एक साथ 500-600 लोग प्रवेश कर जाते हैं।
गुफा के अंदर जाने के बाद उसकी कई शाखाएं मिलती हैं, इसलिए अनजान आदमी को भटक जाने का डर बना रहता है। ऐसा होने के बाद शिवलिंग तक पहुंचने में चार-पांच घंटे का समय लग जाता है। स्थानीय महंत राधा मोहन वैष्णव का कहना है मैकल पर्वत पर स्थित इस गुफा का एक छोर अमरकंटक में है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि आज तक कोई वहां तक नहीं पहुंच पाया है, लेकिन बहुत पहले पानी के रास्ते एक कुत्ता छोड़ा गया था, जो अमरकंटक में निकला। अमरकंट यहां से करीब पांच सौ किलोमीटर दूर है।