श्री मणिमहेश: मणि रूप में देते हैं भगवान शिव दर्शन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Aug, 2017 08:29 AM

mani mahesh yatra

हिमाचल की पीर पंजाल की पहाडिय़ों के पूर्वी हिस्से में तहसील भरमौर में स्थित है प्रसिद्ध मणिमहेश तीर्थ। मणिमहेश शिखर पर भोर में एक प्रकाश उभरता है जो तेजी से पर्वत की गोद में

हिमाचल की पीर पंजाल की पहाडिय़ों के पूर्वी हिस्से में तहसील भरमौर में स्थित है प्रसिद्ध मणिमहेश तीर्थ। मणिमहेश शिखर पर भोर में एक प्रकाश उभरता है जो तेजी से पर्वत की गोद में बनी झील में प्रवेश कर जाता है। यह इस बात का प्रतीक माना जाता है कि भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर बने आसन पर विराजमान होने आ गए हैं तथा यह प्रकाश उनके गले में पहने शेषनाग की मणि का है। 


मणिमहेश यात्रा चम्बा से शुरू होकर राख, खड़ा मुख इत्यादि स्थानों से होती हुई भरमौर पहुंचती है। यात्रा की खोज का श्रेय सिद्ध योगी चरपट नाथ जी को है। यात्रा शुरू करने से पहले भरमौर से 6 किलोमीटर पहाड़ी के शिखर पर ब्रह्मा जी की पुत्री भ्रमाणी देवी का मंदिर स्थित है। मणिमहेश की यात्रा से पूर्व यहां पर आने से ही यात्रा पूर्ण मानी जाती है। चम्बा से 65 किलोमीटर दूर भरमौर चौरासी में रुक कर यात्री आगे बढ़ते हैं। चौरासी एक धार्मिक स्थल है जो चौरासी सिद्धों की तपस्थली है जहां विश्व का एकमात्र धर्मराज मंदिर स्थित है।


चम्बा से भरमौर 70 किलोमीटर व भरमौर से हड़सर 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इसके आगे हड़सर से मणि महेश खड़ी चढ़ाई, संकरे व पथरीले रास्तों वाली 14 मील की पैदल यात्रा है। हड़सर से पैदल चढ़ाई करते हुए पहला पड़ाव आता है धनछोह। गौरीकुंड पहुंचने पर प्रथम कैलाश शिखर के दर्शन होते हैं। यहां से डेढ़ किलो मीटर की सीधी चढ़ाई के बाद मणिमहेश झील पहुंचा जाता है। इस वर्ष 15 अगस्त को प्रारंभ हो चुकी मणिमहेश यात्रा 29 अगस्त तक चलेगी। 
 

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