Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Mar, 2018 10:22 AM
परम विरक्त संत स्वामी कृष्णबोधाश्रम जी महाराज गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ क्षेत्र में गंगा के किनारे पैदल भ्रमण करते हुए एक गांव में पहुंच गए। वह गांव के बाहर गंगा तट पर एक मंदिर में रुक गए। वहां सुबह-शाम गंगा स्नान करते और दिन भर साधना में लगे रहते। गांव...
संत अबुल हसन खिरकानी की परीक्षा लेने के लिए महमूद गजनवी अपने एक गुलाम को शाही लिबास पहनाकर और खुद दासी का रूप धारण कर उनके पास गया। संत ने केवल दासी रूप में आए महमूद की ओर देखा। इस पर बादशाह बना गुलाम बोला, ‘आपने बादशाह का सम्मान क्यों नहीं किया?’ हसन बोले, ‘सब रचा-रचाया जाल है।’महमूद जान गया कि यह पहुंचा हुआ महात्मा है। उसने लिबास उतारकर माफी मांगी और कुछ नसीहतें देने को कहा। अबुल हसन ने दूसरों को बाहर करके कहा, ‘ऐ महमूद। जरा अदब का लिहाज रख। जो चीजें हराम हैं, उनसे दूर रह। खुदा की बनाई दुनिया से प्यार कर और अपने जीवन में उदारता बरत।’ तब महमूद ने उन्हें अशर्फियां की थैली भेंट की। इस पर संत ने एक सूखी जौ की टिकिया उसे खाने को दी।
महमूद उसे चबाता रहा किंतु वह गले न उतरी। तब वह बोला, ‘यह निवाला मेरे गले में अटक रहा है।’ इस पर हसन बोले, ‘तब क्या तू भी यह सोचता है कि यह थैली मेरे हलक में अटके?’ महमूद शर्मिंदा हो गया और जाते-जाते बोला, ‘आपकी झोंपड़ी बड़ी उम्दा है।’हसन बोले, ‘महमूद, खुदा ने तुझे इतनी बड़ी सल्तनत दी, फिर भी तेरा लालच नहीं गया। क्या तू इस झोंपड़े का भी तालिब है?’ महमूद और भी लज्जित हुआ और वह जाने के लिए बढ़ गया, तो हसन खड़े हो गए।
उन्हें खड़ा देखकर महमूद बोला, ‘जब मैं यहां आया, तब आपने सम्मान नहीं किया और अब कर रहे हो।’ हसन बोले, ‘महमूद, जब तुम यहां आए थे, तब तुम्हारे दिल में शाही रौब भरा था। तुम मेरा इम्तिहान लेने आए थे, मगर अब यहां से अदब का ख्याल कर जा रहे हो। क्योंकि तुम्हारे चेहरे पर फकीरी का नूर चमक रहा है इसी कारण मैंने उस समय सम्मान नहीं किया और अब कर रहा हूं।’