नवरात्र: छठे दिन करें देवी कात्यायनी का पूजन, दुर्भाग्य से मिलेगा छुटकारा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Sep, 2017 12:01 PM

navaratri sixth day to worship goddess katyayani

दुर्गा के छठे स्वरूप में देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह पर अपना आधिपत्य रखती हैं। कात्यायनी का स्वरुप उस अधेड़ महिला या पुरुष की तरह है जो परिवार में रहकर अपनी पीढ़ी का भविष्य संवार रहे हैं। महर्षि कत के गोत्र में उत्पन्न होने व

दुर्गा के छठे स्वरूप में देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह पर अपना आधिपत्य रखती हैं। कात्यायनी का स्वरुप उस अधेड़ महिला या पुरुष की तरह है जो परिवार में रहकर अपनी पीढ़ी का भविष्य संवार रहे हैं। महर्षि कत के गोत्र में उत्पन्न होने व महर्षि कात्यायन की पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण देवी पार्वती के इस स्वरूप को कात्यायनी नाम मिला। देवी कात्यायनी का स्वरूप परम दिव्य व सोने के समान चमकीला है। शास्त्रनुसार चतुर्भुजी देवी के ऊपर वाले बाएं हाथ में कमल का फूल है। इन्होंने नीचे वाले बाएं हाथ में तलवार धारण की हुई है। इनका ऊपर वाला दायां हाथ अभय मुद्रा में है। इनका नीचे वाला दायां हाथ वरदमुद्रा में है जो के भक्तों को वरदान देता है। 


शास्त्रनुसार स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित देवी पीले वस्त्रों में सिंह पर विराजमान हैं। श्रीकृष्ण को पतिरूप में पाने हेतु ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। आज भी अच्छे और मन भावन पति की इच्छा से कुंवारी लड़कियां इनका व्रत रखती हैं। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। देवी कात्यायिनी की साधना का संबंध बृहस्पति ग्रह से है। कालपुरूष सिद्धांत के अनुसार बृहस्पति ग्रह का संबंध कुण्डली के नवम व द्वादश घर से होता है अतः देवी कात्यायिनी का संबंध व्यक्ति के धर्म, भाग्य, इष्ट, हानि, व्यय, व मोक्ष से है। वास्तुपुरुष सिद्धांत के अनुसार इनकी दिशा उत्तरपूर्व है अतः निवास में बने वो स्थान जहां पर देवालय, अंडरग्राउंड वाटर टेंक व बोरवेल हो। 


इनकी पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय हैं गौधूलि व इनकी पूजा पीले फूलों से करनी चाहिए। इन्हें बेसन के हलवे का भोग लगाना चाहिए व श्रृंगार में इन्हें हल्दी अर्पित करनी चाहिए। देवी कात्यायिनी की साधना उन लोगों के लिए सर्वश्रेष्ठ है जिनकी आजीविका का संबंध अध्ययन, लेखापाल या कर विभाग से है। इनकी साधना से दुर्भाग्य से छुटकारा मिलता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार होता है।


पूजन मंत्र: चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥


देवी कात्यायनी की कवच : 

कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।

ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥

कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥


आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com 

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!