Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Mar, 2018 03:13 PM
बहुत समय पहले आरिफ सुभानी नाम के दरवेश हुए थे। उन्हें दुनिया की किसी भी वस्तु से मोहमाया नहीं थी। पहनने के लिए कपड़ों के अलावा उनके पास दूसरी कोई और चीज न थी। शांतिप्रिय और सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले इस दरवेश का स्वभाव दूसरों से मेल भी नहीं खाता था।...
बहुत समय पहले आरिफ सुभानी नाम के दरवेश हुए थे। उन्हें दुनिया की किसी भी वस्तु से मोहमाया नहीं थी। पहनने के लिए कपड़ों के अलावा उनके पास दूसरी कोई और चीज न थी। शांतिप्रिय और सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले इस दरवेश का स्वभाव दूसरों से मेल भी नहीं खाता था। आरिफ सुभानी मंदिर, मस्जिद और चर्च में कोई भेद नहीं देखते थे।
अल्लाह के बंदों को यही सीख देते थे कि मजहब के भेदभाव से ऊपर उठो। एक बार उनके पास एक व्यक्ति आया। उसने कहा कि वह उनके पास रहकर अल्लाह की बंदगी करना चाहता है। उन्होंने पूछा, ‘‘क्या तुम्हें और कोई नहीं मिला।’’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘‘मैंने किसी और के बारे में सोचा ही नहीं। मैंने ठान लिया था कि आपसे ही सीखना है। आप ही बताएं कि मैं क्या करूं। किसके पास जाऊं।’’
यह सुनकर दरवेश ने कहा, ‘‘यदि तुम मुस्लिम हो तो ईसाइयों के पास जाओ। अगर शिया हो तो इखराजियों (एक मुस्लिम सम्प्रदाय) के पास जाओ और यदि सुन्नी हो तो शियाओं के बीच जाओ।’’ आरिफ सुभानी की बात सुनकर वह व्यक्ति हैरान हो गया। उसे उनके मशविरे का मतलब समझ नहीं आया।
दरवेश ने उसे अपनी बात समझाते हुए कहा, ‘‘मेरे कहने का मतलब है कि तुम जिस धर्म को मानते हो उस धर्म को न मानने वालों के पास जाओ। उनके पास जाने पर वे तुम्हारे धर्म की ङ्क्षनदा करेंगे। तुम सुनते रहना। जब तुममें इतनी सहिष्णुता आ जाए कि विरोधियों की बातों का बुरा न लगे तो तुम्हें सच्ची शांति मिलेगी और तुम खुदा के बंदों में अपना स्थान बना लोगे।’’
दरवेश आरिफ सुभानी से उस व्यक्ति को यह सीख मिली कि कोई भी धर्म किसी दूसरे धर्म का बाधक नहीं होता है। खोट हमारे मन में होता है कि हम अपने धर्म को श्रेष्ठ और दूसरे धर्म को तुच्छ समझते हैं।