कल का बृहस्पतिवार है खास, दो गायों को दान देने के समान देगा पुण्य फल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Mar, 2018 01:33 PM

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प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है। यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है। माना जाता है कि

प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है। यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है। माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों को दान देने के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म-जन्मांतर के चक्र से निकल कर मोक्ष को प्राप्त करता है। उसे उत्तम लोक की प्राप्ति होती है।


प्रदोष व्रत से मिलने वाले फल
अलग-अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते हैं। रविवार को पडऩे वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। सोमवार के दिन त्रयोदशी पडऩे पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। गुरुवार (वीरवार) के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है। शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शांति के लिए किया जाता है। संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पडऩे वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए। अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किए जाते हैं, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृद्धि होती है। 


प्रदोष व्रत की विधि
प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए। नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, भगवान श्री भोलेनाथ का स्मरण करें। इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता। पूरा दिन उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते हैं। पूजनस्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है। अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है। प्रदोष व्रत की आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और भगवान शंकर का पूजन करें। पूजन में भगवान शिव के मंत्र  ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए। 

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