Diwali rangoli vastu for home: दिवाली पर बेहतरीन रंगोली से सजाएं अपना आशियाना, रंगीन होंगे दिन-रात

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Nov, 2023 12:00 PM

on diwali decorate your home with rangoli

हमारे देश में त्यौहारों का जितना महत्व है उतना ही महत्व प्रवेश द्वार पर स्वागत करती रंगोली का भी है।

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Diwali 2023 Rangoli Design: हमारे देश में त्यौहारों का जितना महत्व है उतना ही महत्व प्रवेश द्वार पर स्वागत करती रंगोली का भी है। वास्तु में रंगोली बनाने का अपना महत्व है। कहा जाता है कि दिवाली पर घर के दरवाजे पर रंगोली बनाने से परिवार की नकारात्मकता दूर होती है। दिवाली पर मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए घर के दरवाजे पर अलग-अलग रंगों से रंगोली बनाई जाती है। दिवाली पर अगर बाजार से बनी-बनाई रंगोली दरवाजे पर लगा रहे हैं तो इस बात का खास ध्यान रखें कि इसमें भगवान गणेश और लक्ष्मी की तस्वीर नहीं होनी चाहिए। ऐसा करना शुभ नहीं माना जाता। फर्श पर रंगोली बनाते समय स्वास्तिक और ओम नहीं बनाने चाहिए।

PunjabKesari Diwali 2023 Rangoli Design

वास्तु के अनुसार रंगोली हमेशा उत्तर दिशा में ही बनानी चाहिए क्योंकि उत्तर दिशा धन के देवता कुबेर का क्षेत्र है, यहां पर सही आकार और सही रंग की रंगोली बनाकर आप अपने जीवन में नए अवसरों और धन को आकर्षित कर सकते हैं।

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रंगोली बनाने के लिए अलग-अलग तरह की चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ लोग रंगोली बनाने के लिए आटे का प्रयोग करते हैं तो कुछ सूखे रंगों, रंगीन चाक, खड़िया, गेरू से रंगोली बनाते हैं। इन चीजों से बनाई गई रंगोली तो एक-दो दिन ही चलती है लेकिन कुछ लोग स्थायी रंगोली बनाने के लिए ऑयल पेंट का इस्तेमाल भी करते हैं जो साफ करने पर भी नहीं उतरता है। वैसे मार्केट में आजकल रैडीमेड रंगोली स्टिकर्स भी मिलते हैं। आपको केवल कागज के पीछे लगा स्टिकर पेपर निकालकर घर के फलोर पर चिपका देना होता है। रंगोली कई तरह के डिजाइनों में विभिन्न प्रांतों व संस्कृतियों के हिसाब से अलग-अलग तरह की बनाई जाती है। 

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बिंदु और रेखा का संगम: महाराष्ट्र में चावल के आटे से रंगोली बनाने का प्रचलन है। यहां बिंदुओं और रेखाओं को मिलाकर रंगोली बनाने का प्रचलन है। कई बार रंगोली में रंग नहीं भरे जाते। केवल रेखाओं से सिंपल डिजाइन ही बना दी जाती है। इसके अलावा महाराष्ट्र में बनाई जाने वाली रंगोली के डिजाइन में कमल को शंख का आकार देकर बनाया जाता है जो देखने में बहुत सुंदर लगता है।


पेड़ और पत्तियों का मिलन: दक्षिण भारत और बंगाल में रंगोली बनाने के लिए पेड़ के पत्तों और फूलों की पंखुडिय़ों का प्रयोग किया जाता है। बंगाल में बनाई जाने वाली रंगोली में चित्रों के बनाए जाने पर ज्यादा फोकस किया जाता है। दक्षिण भारतीय रंगोली गोलाकार, त्रिकोण, चौकोर, अष्टकोणीय, षट्कोणीय, डायमिट्रिकल डिजाइंस में तैयार की जाती है। इस रंगोली का आकार भी थोड़ा बड़ा होता है। इस वजह से समय भी ज्यादा लगता है।


सुंदर व कलात्मक: गुजरात के गांवों में नील, गेरू, खड़िया, चाक, गीली मिट्टी को मांडने का प्रचलन है। इससे रंगोली बनाने के लिए खड़िया, चाक, नील, गेरू आदि को पहले पानी में मिलाया जाता है। फिर एक डंडी की छड़ के कोने पर रूई लगाकर उसे नील, खड़िया में डुबोया जाता है और घर की कच्ची या पक्की जमीन पर ‘मांडने’ बनाए जाते हैं। 


जीवंत रंगोली: इसके अलावा रंगोली बनाने के लिए कई रंगों का प्रयोग भी किया जाता है जिनमें पीला रंग प्रगति का प्रतीक होता है। हरा रंग हरियाली का, गुलाबी रंग खुशियों का, लाल रंग और सिंदूर प्रेम व सुहाग का प्रतीक है तो सफेद रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक होता है।


इन सभी रंगों को रंगोली के अलग-अलग खानों में डिजाइन बनाकर भरा जाता है। फिर किनारों पर दीये व मोमबत्तियां भी रखी जाती हैं। फूलों से भी कई तरह के डिजाइन बनाए जाते हैं जो ताजगी के प्रतीक होते हैं।


रंगोली पूरे देश में बनाई जाती है। भले ही अलग-अलग रूप व आकार में ही क्यों न बनाई जाए, पर इसका महत्व सब जगह एक-सा ही है- त्यौहारों के पावन अवसर पर घर में खुशियां बिखेरना।

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