श्रीमद्भगवद्गीता: कर्म फल के आधार पर बार-बार धरती पर जन्म लेता है मनुष्य

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Mar, 2018 02:06 PM

on the basis of karma man is born again and again on earth

बड़े-बुजुर्गों को अक्सर कहते हैं कि गीता में जीवन का सार है। श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध में अर्जुन को कुछ उपदेश दिए थे, जिससे उस युद्ध को जीतना पार्थ के लिए आसान हो गया। आज हम आपको श्रीमद्भगवद्गीता के एेसे ही श्लोक के बारे में बताने जा रहे हैं

बड़े-बुजुर्गों को अक्सर कहते सुना गया है कि गीता में जीवन का सार है। श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध में अर्जुन को कुछ उपदेश दिए थे, जिससे उस युद्ध को जीतना पार्थ के लिए आसान हो गया। आज हम आपको श्रीमद्भगवद्गीता के एेसे ही श्लोक के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें बताया गया है कि कैसे मनुष्य अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए बार-बार इस धरती पर जन्म लेता है। 

श्लोक
धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण: षण्मासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते।। गीता 8/25।।

अर्थ: धुंआ, रात्रि, कृष्ण पक्ष और दक्षिणायन के छः महीने (देहाध्यास) में प्रयाण करने वाला योगी चंद्र ज्योति को प्राप्त कर वापिस लौट आता है।


भावार्थ: बहुत कम लोग जानते होंगे कि जैसे वर्ष के 6 महीने उत्तरायण के होते हैं, उसी तरह बाकी के 6 महीने दक्षिणायन के होते हैं। लेकिन इस श्लोक में दक्षिणायन का अर्थ देहाध्यास है। अर्थात जब व्यक्ति में मोह-माया के कारण राग और द्वेष बना रहता है व  आसक्ति और अहंकार मरते समय भी बाकी रह जाता है। जब अनेक अधूरी इच्छाओं के साथ जब शरीर की मृत्यु होती है, उस समय व्यक्ति को सब कुछ धुंएं जैसा दिखाई देने लगता है अर्थात कुछ भी सत्य नहीं दिखता। आंखों के आगे अमावस्या की काली रात के समान अंधेरा सा छा जाता है। इस अवस्था में जब व्यक्ति शरीर छोड़ता है, तब वह कुछ समय के लिए चंद्र ज्योति को प्राप्त कर, अपने कर्मों फलों के आधार पर फिर से इस धरती पर जन्म लेता है और जब तब मुक्त न हो जाए तब तक जन्म-मरण का यह चक्र चलता रहता है।

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