Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Nov, 2017 11:52 AM
महाराष्ट्र के रोजन नगर में एक ब्राह्मण हमेशा अपनी पत्नी से लड़ता रहता था। अक्सर वह पत्नी को धमकी देता, ‘‘मेरी बात नहीं मानेगी तो संत संतोबा पवार का शिष्य बन जाऊंगा।’’ एक दिन ब्राह्मण की अनुपस्थिति में संत संतोबा भिक्षा मांगने उसके घर आए।
महाराष्ट्र के रोजन नगर में एक ब्राह्मण हमेशा अपनी पत्नी से लड़ता रहता था। अक्सर वह पत्नी को धमकी देता, ‘‘मेरी बात नहीं मानेगी तो संत संतोबा पवार का शिष्य बन जाऊंगा।’’ एक दिन ब्राह्मण की अनुपस्थिति में संत संतोबा भिक्षा मांगने उसके घर आए। ब्राह्मण पत्नी ने संत जी को बताया कि मेरा पति आपका शिष्य बनने की धमकी देता है। संत जी मुस्कुरा कर बोले, ‘‘बेटी, अब उसे कह देना कि बन जाओ शिष्य संतोबा जी के। मैं ऐसा मंत्र फूंक दूंगा कि फिर वह घर छोडने की धमकी नहीं देगा।’’
अगले दिन ब्राह्मण घर आया। भोजन में विलंब देखकर पत्नी से झगड़ते हुए बोला, ‘‘मैं घर छोड़ कर बाबा जी बन जाऊंगा।’’ पत्नी बोली, ‘‘ठीक है, जाओ।’’ ब्राह्मण बड़बड़ाता हुआ चल दिया और संत संतोबा जी के आश्रम में पहुंच कर बोला, ‘‘महाराज, मुझे वैराग्य हो गया है। मुझे अपना शिष्य बना लीजिए।’’ संत जी ने उसे कुटिया में रहने की आज्ञा दे दी। सुबह नदी में स्नान के बाद संतोबा जी ने कहा, ‘‘अपने कपड़े त्याग कर लंगोटी धारण कर लो।’’ उसने कपड़े उतार दिए और ठंड में ठिठुरने लगा। दोपहर में उसे कंदमूल खाने को मिले।
स्वादहीन कंदमूल उसके गले से ही नहीं उतरे। पत्नी के साथ वह प्राय: भोजन में स्वाद न होने की बात पर ही झगड़ता था। कंदमूल न खा सकने के कारण वह भूख से बिलखने लगा। संतोबा जी उसकी पीड़ा समझ गए और बोले, ‘‘वत्स, वैराग्य का पहला पाठ जिह्वा के स्वाद पर नियंत्रण करना है। तुम पहले पाठ के पहले ही दिन रोने लगे, तब संत कैसे बनोगे?’’
उन्होंने ब्राह्मण को समझाते हुए कहा, ‘‘अपने घर लौट जाओ। परिवार में प्रेमपूर्वक रहो और दूसरों की सेवा करो। तुम्हें गृहस्थ संत के रूप में ख्याति मिलेगी।’’ संत की सीख ने उसका जीवन बदल दिया। आगे चलकर वही संत नरोत्तम राव के नाम से विख्यात हुए।