Pitru paksha 2020: श्राद्ध के पांचवे दिन इस विधि से करें पितृ पूजा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Sep, 2020 09:10 AM

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आश्विन कृष्ण पंचमी के दिन पंचमी का श्राद्ध मनाया जाएगा। इस दिन उन मृतक पितृों का श्राद्ध किया जाता है, जो अविवाहित ही मृत्यु को प्राप्त हुए हैं। अतः इसे कुंवारा पंचमी कहा जाता है।

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Pitru paksha 2020: आश्विन कृष्ण पंचमी के दिन पंचमी का श्राद्ध मनाया जाएगा। इस दिन उन मृतक पितृों का श्राद्ध किया जाता है, जो अविवाहित ही मृत्यु को प्राप्त हुए हैं। अतः इसे कुंवारा पंचमी कहा जाता है। अतः कुंवारे पितृ का श्राद्ध भाई, भतीजा, भांजा इत्यादि करने की शास्त्र आज्ञा देता है। शास्त्रनुसार पितृ के निमित्त सारी क्रियाएं दाएं कंधे में जनेऊ डाल कर व दक्षिणमुखी होकर की जाती हैं।

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शास्त्रनुसार श्राद्ध सदैव मध्यान्ह के बाद ही करना चाहिए अर्थात जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लगे। दोपहर 12 बजे से पूर्व किया गया श्राद्ध पितृ तक नही पहुंचता। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जो गृहस्थ पितृपक्ष में अपने पितृ को श्रद्धापूर्वक उनकी दिवंगत तिथि के दिन तर्पण, पिंडदान, तिलांजलि व ब्राह्मण भोज कराते हैं, उनको जीवन में सभी सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं। मृत्यु उपरांत भी श्राद्धकर्ता को श्रेष्ठ लोक की प्राप्ति होती है। जो गृहस्थ पितृपक्ष में विधिवत पूजन कर ब्राह्मण भोज कराते हैं, उनके घर लक्ष्मी-नारायण निवास करते हैं और वो सदैव ही धन-धान्य से परिपूर्ण रहते हैं। 

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पंचमी श्राद्ध विधि: पंचमी श्राद्धकर्म में पांच ब्राह्मणों को भोजन कराने का मत है। श्राद्ध में गंगाजल, कच्चा दूध, तिल, जौ व शहद मिश्रित जल की जलांजलि दें तदुपरांत पितृगणों का विधिवत पूजन करें। इस दिन पितृगण के निमित्त, गौघृत का दीपक करें, चंदन की अगरबत्ती जलाएं, शहद लाल फूल, लाल चंदन और अशोक का पत्ता समर्पित करें। चावल या जौ के आटे के पिण्ड आदि समर्पित करें। फिर उनके नाम का नैवेद्य रखें। कुशा के आसन में बैठाकर पितृ के निमित्त भगवान विष्णु के पाञ्चजन्य स्वरूप का ध्यान करते हुए गीता के पांचवें अध्याय का पाठ करें व उनके निमित्त इस विशेष पितृ मंत्र का यथासंभव जाप करें। इसके उपरांत ब्राह्मणों को राजमा, चावल, सूजी का हलवा, पूड़ी-सब्ज़ी, खजूर की खीर, ईलायची व मिश्री अर्पित करें। भोजन के बाद सभी को यथाशक्ति वस्त्र, धन-दक्षिणा देकर उनको विदा करने से पूर्व आशीर्वाद लें। 

विशेष पितृ मंत्र: ॐ पाञ्चजन्यधराय नमः॥

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