यहां भोलेनाथ से पहले नंदी के दर्शन करने वालों को अगले जन्म में मिलती है पशु योनि

Edited By ,Updated: 23 May, 2017 02:46 PM

pashupati nath temple

नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन कि.मी. दूर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर पशुपतिनाथ मंदिर स्थित है। मंदिर से संबंधित कई अनोखी

नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन कि.मी. दूर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर पशुपतिनाथ मंदिर स्थित है। मंदिर से संबंधित कई अनोखी बातें अौर रहस्य जुड़े हुए हैं, जिसके कारण इसका महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। पशुपतिनाथ मंदिर को भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग को पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में मंदाकिनी नदी के तट पर बसे केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का ही आधा हिस्सा है।
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मंदिर से संबंधित मान्यता है कि जो व्यक्ति पशुपतिनाथ के दर्शन कर लेता है, उसका जन्म कभी भी पशु योनि में नहीं होता। माना जाता है कि मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय भक्तों को मंदिर के बाहर विराजित नंदी के दर्शन नहीं करने चाहिए। जो व्यक्ति पहले नंदी के दर्शन करने के बाद शिवलिंग के दर्शन करता है, उसे अगले जन्म में पशु योनि में जन्म मिलता है। 
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एक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध में पांडवों द्वारा अपने गुरुअों अौर संगे-संबंधियों का वध किए जाने से भगवान शिव पांडवों से नाराज हो गए थे। भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पांडव भोलेनाथ से क्षमा मांगने के लिए गए। लेकिन गुप्त काशी में पांडवों को देखकर भगवान शिव वहां से विलीन हो गए अौर उस स्थान पर पहुंच गए जहां पर वर्तमान में केदारनाथ स्थित है। भोलेनाथ का पीछा करते हुए पांडव केदारनाथ पहुंच गए। पांडवों को आता देख भगवान शिव ने भैंसे का रुप धारण कर लिया अौर वहां चर रहे भैंसों के झुंड में शामिल हो गए। पांडवों ने भैंसों के झुंड में भी भगवान शिव को पहचान लिया। तब भोलेनाथ भैंसे के रुप में ही जमीन में समाने लगे लेकिन भीम ने उन्हें कसकर पकड़ लिया। 
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यह देखकर भोलेनाथ प्रकट हुए अौर पांडवों को पापों से मुक्त कर दिया। इस बीच भैंस बने भगवान शिव का सिर काठमांडू स्थित पशुपति नाथ में पहुंच गया। इसलिए केदारनाथ और पशुपतिनाथ को मिलाकर एक ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है।पशुपतिनाथ में भैंस के सिर और केदारनाथ में भैंस के पीठ रूप में शिवलिंग की पूजा होती है। मंदिर के बाहर आर्य घाट स्थित है। इस घाट को बहुत पवित्र माना जाता है। इसी घाट का पानी मंदिर के अंदर ले जाया जाता है। अन्य किसी पानी को मंदिर में लेकर जाने की अनुमति नहीं है।  
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पशुपतिनाथ लिंग विग्रह में चार दिशाओं में चार मुख और ऊपरी भाग में पांचवां मुख है। प्रत्येक मुखाकृति के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। प्रत्येक मुख अलग-अलग गुण प्रकट करता है। दक्षिण दिशा वाला मुख अघोर मुख है, जो दक्षिण की ओर है, पूर्व मुख को तत्पुरुष कहते हैं, उत्तर मुख अर्धनारीश्वर रूप है और पश्चिमी मुख को सद्योजात कहा जाता है। ऊपरी भाग में स्थित पांचवें मुख को ईशान मुख के नाम से पुकारा जाता है। यह मंदिर हिंदू धर्म के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। इस मंदिर को यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल किया गया है।
 

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