Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Feb, 2018 03:15 PM
ऐंड्रू कारनेगी अमरीका के ही नहीं बल्कि विश्वविश्रुत उद्योगपति थे। उनके स्वस्थापित ट्रस्टों ने मानवतावादी दृष्टि से अंग्रेजी भाषाभाषी विश्व की साहित्य, कला, संस्कृति, शिक्षा एवं समाजसेवा की दिशा में सेवा का उज्वल दृष्टांत उपस्थित किया था।
ऐंड्रू कारनेगी अमरीका के ही नहीं बल्कि विश्वविश्रुत उद्योगपति थे। उनके स्वस्थापित ट्रस्टों ने मानवतावादी दृष्टि से अंग्रेजी भाषाभाषी विश्व की साहित्य, कला, संस्कृति, शिक्षा एवं समाजसेवा की दिशा में सेवा का उज्वल दृष्टांत उपस्थित किया था।
जब वह मरने को थे तो उन्होंने अपने सैक्रेटरी से पूछा, ‘‘देख, तेरा-मेरा जिंदगी भर का साथ है। एक बात मैं बहुत दिनों से पूछना चाहता था। ईश्वर को साक्षी मानकर सच बताओ कि अगर अंत समय परमात्मा तुझसे पूछे कि तूं कार्नेगी बनना चाहेगा या सैक्रेटरी, तो तूं क्या जवाब देगा?’’
सैक्रेटरी ने बेबाक उत्तर दिया, ‘‘सर! मैं तो सैक्रेटरी ही बनना चाहूंगा।’’
अरबपति कार्नेगी बोले, ‘‘क्यों?’’ इस पर सैक्रेटरी ने कहा, ‘‘मैं आपको 40 साल से देख रहा हूं। आप दफ्तर में चपड़ासियों से भी पहले आ धमकते हैं और सबके बाद जाते हैं। आपने जितना धन आदि इकट्ठा कर लिया, उससे अधिक के लिए निरंतर चिंतित रहते हैं। आप ठीक से खा नहीं सकते, रात को सो नहीं सकते। मैं तो स्वयं आपसे पूछने वाला था कि आप दौड़े तो बहुत लेकिन पहुंचे कहां? यह क्या कोई सार्थक जिंदगी है? आपकी लालसा, चिंता और संताप देखकर ही मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि हे भगवान! तेरी बड़ी कृपा, जो तूने मुझे एंड्रयू कार्नेगी नहीं बनाया।’’
यह सुनकर कार्नेगी ने अपने सैक्रेटरी से कहा, ‘‘मेरे मरने के बाद तुम अपना निष्कर्ष सारी दुनिया में प्रचारित कर देना। तुम सही कहते हो। मैं धनपति कुबेर हूं लेकिन काम से फुर्सत ही नहीं मिली। बच्चों को समय नहीं दे पाया, पत्नी से अपरिचित ही रह गया, मित्रों को दूर ही रखा, बस अपने साम्राज्य को बचाने-बढ़ाने की निरंतर चिंता करता रहा। अब लग रहा है कि यह दौड़ व्यर्थ थी।’’ कल ही मुझसे किसी ने पूछा था, ‘‘क्या तुम तृप्त होकर मर पाओगे?’’ मैंने उत्तर दिया, ‘‘मैं मात्र 10 अरब डालर छोड़कर मर रहा हूं। 100 खरब की आकांक्षा थी, जो अधूरी रह गई।’’
सबक: यह उदाहरण उन लोगों के लिए शिक्षाप्रद सिद्ध हो सकता है जो पाश्चात्य संस्कृति की दौड़ में धन की लालसा के लिए चिंता, भय, तनाव, ईर्ष्या आदि जैसे मनोरोगों से ग्रस्त होकर सार्थक जीवन के वास्तविक आनंद से वंचित हो रहे हैं। कार्नेगी के सैक्रेटरी की भांति उत्तम चरित्र वाले व्यक्ति पॉजीटिव लाइफ में विश्वास करते हैं जिससे उनका जीवन संतुलित रहता है क्योंकि वे जानते हैं कि वर्तमान में ही भावी जीवन का निर्माण होता है और इसके लिए धन संचय की प्रवृत्ति निर्मूल है।