दुख में भी सुख तलाश करने वाले लोग ही कर पाते हैं मानवता की सेवा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Feb, 2018 10:16 AM

people who seek happiness in misery can only serve humanity

भगवान कृष्ण कहते हैं कि जिसका मन वश में है, जो राग-द्वेष से रहित है, वही स्थायी प्रसन्नता को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति अपने मन को वश में कर लेता है, उसी को कर्मयोगी भी कहा जाता है। इस संसार में मनुष्य दो प्रकार के हैं।

भगवान कृष्ण कहते हैं कि जिसका मन वश में है, जो राग-द्वेष से रहित है, वही स्थायी प्रसन्नता को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति अपने मन को वश में कर लेता है, उसी को कर्मयोगी भी कहा जाता है। इस संसार में मनुष्य दो प्रकार के हैं। एक तो दैवीय प्रकृति वाले, दूसरे आसुरी प्रकृति वाले। इसी तरह से हमारे मन में दो तरह का चिंतन चलता है। सकारात्मक एवं नकारात्मक। सकारात्मक सोच वाले खुश और नकारात्मक सोच वाले दुखी देखे जाते हैं।


हमारी सोच ही हमें सुखी और दुखी बनाती है। हमारी सोच या चिंतन जैसा होता है, वह हमारे चेहरे पर, हमारे व्यवहार, हमारे कार्यों में दिखने लगता है। जब हमारे अंदर भय और शंकाएं प्रवेश कर जाती हैं तो हमारी आंखों व हमारे हाव-भाव से इसका पता चलने लगता है और हमारे भीतर जब खुशियां प्रवेश करती हैं या हमारा चिंतन हास्य या खुशी का होता है तो हमारे सारे व्यक्तित्व से खुशी झलकती है। 

 

जब हम मुस्कराहट के साथ लोगों से मिलते हैं तो सामने वाला भी हमसे खुशी के साथ मिलता है। जब हम दुखी होते हैं या गुस्से में होते हैं तो दूसरे लोग हमें पसंद नहीं करते और वे हमसे दूर जाने का प्रयास करते हैं। बहुत से लोगों की सोच या चिंतन अपना दुख बताने की होती है। ऐसे लोग खुद तो दुखी रहते ही हैं, दूसरों को भी दुखी करते हैं। हमारा चिंतन यदि सकारात्मक है तो हममें दया, करुणा, उदारता, सेवा, परोपकार और सद्गुण देने वाली शक्ति का संचार होता है। यदि हमारा चिंतन नकारात्मक है तो हम राग-द्वेष के बंधन में बंधते चले जाते हैं।


महाभारत में श्रीकृष्ण ने सकारात्मक चिंतन के कारण ही दुर्योधन के सामने पांडवों को पांच गांव देने का प्रस्ताव रखा था, पर नकारात्मक सोच वाले दुर्योधन ने प्रस्ताव ठुकराकर युद्ध करने का निश्चय किया, जिसका परिणाम भारी जन-धन की हानि के रूप में सामने आया। इसलिए हम कह सकते हैं कि दुख और सुख का एकमात्र कारण हमारा चिंतन है। जो दुखों में भी सुखों की तलाश करते हैं, वही सच्चे अर्थों में मानवता की सेवा कर पाते हैं और संसार को खुशियां बांटते हैं। हमारा चिंतन सकारात्मक ही हो।

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