पितृों से आशीर्वाद की कामना है, इन बातों का रखें ध्यान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Sep, 2017 11:51 AM

pitra paksh shradh

‘ब्रह्मपुराण’ में कहा गया है कि जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक पितृपक्ष में अपने पितृों को पिंडदान व तिलांजलि देते हैं, उन पर सदैव पितृों की अनुकम्पा बनी रहती है। अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का महापर्व भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू हो जाता है,

‘ब्रह्मपुराण’ में कहा गया है कि जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक पितृपक्ष में अपने पितृों को पिंडदान व तिलांजलि देते हैं, उन पर सदैव पितृों की अनुकम्पा बनी रहती है। अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का महापर्व भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू हो जाता है, हिन्दू धर्म में पितृपक्ष आश्विन कृष्णपक्ष से लेकर अमावस्या पर पितृों का श्राद्ध करने की परंपरा है। इस महापर्व में अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता, उनके प्रति श्रद्धा व उनकी आत्मा को शांति देने के लिए श्राद्ध किया जाता है और उनसे आशीर्वाद की कामना की जाती है। किंवदंती है कि इस अवधि में पितृगण मोक्ष प्राप्ति की कामना लेकर अपने परिजनों के समीप विविध रूपों में आते हैं। पितृगण अपने परिजनों से संतुष्ट होकर उन्हें आयु, सुसन्तति, सुख-समृद्धि, सफलता व आरोग्य होने का आशीर्वाद देते हैं।  ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार जिस तिथि में माता-पिता का देहांत होता है, उसी तिथि में उनका श्राद्ध किया जाना चाहिए।


मोक्ष की अभिलाषा : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मृतात्माएं तब तक पितृ लोक में ही भ्रमण करती रहती हैं जब तक उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। उन्हें मोक्ष तभी प्राप्त होता है जब उनके पुत्र या पौत्र द्वारा उनका श्राद्ध किया जाए इसलिए मृतात्माएं हर वर्ष पितृपक्ष में अपने परिजनों के आसपास मोक्ष की कामना के लिए मंडराती रहती हैं। इनकी आत्मा की शांति के लिए ‘श्रीमद् भागवद गीता’ व ‘भागवत पुराण’ का पाठ अति उत्तम माना जाता है।


पितृपक्ष में पूजा विधि : पितृपक्ष में अपने पूर्वजों के आह्वान के लिए भात, घी व काले तिलों का मिश्रण करके पिंड दान व तर्पण किया जाता है। तर्पण व श्राद्ध प्राय: दोपहर बारह बजे करना उत्तम माना जाता है। इसे किसी नदी, तालाब या फिर घर पर भी किया जा सकता है। इसके बाद भगवान विष्णु व मृत्यु के देवता यमराज की पूजा-अर्चना के साथ-साथ अपने तीन पीढ़ी पूर्व के पूर्वजों की पूजा भी की जाती है। पूजा-अर्चना के बाद पितृों को विशेष भोजन अर्पित किया जाता है। आमंत्रित ब्राह्मणों को भोजन, फल, मिठाई, वस्त्र व दक्षिणा प्रदान की जाती है।


इन दिनों घर पर पेंट व सफेदी नहीं की जाती, घर पर कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता व घर पर नाखून काटना व दाढ़ी बनाना आदि कार्यों को वर्जित माना जाता है।

 

पितृ भोज : पितृपक्ष में अपने पितृों के लिए खीर, पूड़ी, कद्दू की सब्जी, गुआर फली की सब्जी, भात-दाल व पितर का पसंदीदा व्यंजन बनाना चाहिए।


पितृ भोज बनने के बाद किसी थाली या अन्य बर्तन में पितृ-भोज परोस कर बाहर अपने घर की छत पर कौओं व अन्य पक्षियों के लिए रखना चाहिए ताकि वे इस भोजन को ग्रहण कर सकें। माना जाता है कि कौवे एवं अन्य पक्षियों द्वारा भोजन ग्रहण करने पर ही पितृों को भोजन की प्राप्ति होती है क्योंकि कौवे को पितृों का प्रतीक व अन्य पक्षियों को पितृों का दूत माना जाता है। कौओं व अन्य पक्षियों को भोजन प्रदान करने के बाद भोजन को केले के पत्ते, सूखे दोने या पत्तल में परोस कर गाय, कुत्ते एवं ब्राह्मणों को भोजन परोसा जाता है।


इन दिनों घर पर प्याज, लहसुन, मांसाहार व नशे का सेवन वर्जित है।


पितृों का आशीर्वाद : इस अवधि में किसी का अपमान नहीं करना चाहिए और क्रोध एवं ईर्ष्या आदि बुरे विचारों का त्याग करें। पितृों का आशीर्वाद पाने के लिए पितृ पक्ष में गीता का पाठ करना उत्तम माना जाता है। 


पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीपक प्रज्जवलित कर तथा पेड़ पर गंगा जल, घी, दूध, अक्षत व फूलमाला चढ़ाकर पितृों की आत्मा को शांति मिलती है। हिन्दू धर्मानुसार यदि पूर्वजों के नाम पर अस्पताल, मंदिर, स्कूल, धर्मशाला आदि बनाए जाएं तो भी पितृों का आशीर्वाद मिलता है। 


पितृ पक्ष में पिंड दान अवश्य करना चाहिए ताकि पितृ देवों का आशीर्वाद मिल सके।


विष्णु पुराण में कहा गया है कि गरीब मनुष्य अपने पितृों की मोक्ष प्राप्ति के लिए मोटा अनाज (आटा, चावल व कोई एक दाल), जंगली साग-पात व फल आदि के साथ तथा कम-से-कम अपनी इच्छानुसार किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं और यदि यह भी संभव न हो तो वे तीन-तीन तिलों को अंजलि में जल के साथ मिला कर पंडित को दान कर सकते हैं। 


इसके पश्चात वे गाय को घास खिला कर, सूर्य देव की ओर ऊपर हाथ फैला कर प्रार्थना करें कि, ‘‘हे ब्रह्मदेव, मेरे पितृ मेरी भक्ति से संतुष्ट हों।’’ 


इस प्रकार उनके पितृों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है और वे अपने परिवारजनों को आशीर्वाद देकर चले जाते हैं।    

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